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________________ द्वितीय प्रकरण विशेषावश्यकभाष्य विशेषावश्यकभाष्य' एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें जैन आगमों में वर्णित सभी महत्त्वपूर्ण विषयों की चर्चा की गई है। जैन ज्ञानवाद, प्रमाणशास्त्र, आचारनीति, स्याद्वाद, नयवाद, कर्मसिद्धान्त आदि सभी विषयों से सम्बन्धित सामग्री की प्रचुरता का दर्शन इस ग्रन्थ में सहज ही उपलब्ध होता है। इस ग्रंथ की एक बहुत बड़ी विशेषता यह है कि इसमें जैन तत्त्व का निरूपण केवल जैन दृष्टि से न होकर इतर दार्शनिक मान्यताओं की तुलना के साथ हुआ है। आचार्य जिनभद्र ने आगमों की सभी प्रकार की मान्यताओं का जैसा तर्कपुरस्सर निरूपण इस ग्रन्थ में किया है वैसा अन्यत्र देखने को नहीं मिलता। यही कारण है कि जैनागमों के तात्पर्य को ठीक तरह समझने के लिए विशेषावश्यकभाष्य एक अत्यन्त उपयोगी ग्रंथ है। आचार्य जिनभद्र के उत्तरवर्ती जैनाचार्यों ने विशेषावश्यकभाष्य की सामग्री एवं तकपद्धति का उदारतापूर्वक उपयोग किया है। उनके बाद में लिखा गया आगम की व्याख्या करनेवाला एक भी महत्त्वपूर्ण ग्रंथ ऐसा नहीं है जिसमें विशेषावश्यकभाष्य का आधार न लिया गया हो। इस संक्षिप्त भूमिका के साथ अब हम विशेषावश्यकभाष्य के विस्तृत परिचय की ओर बढ़ते हैं । यह ग्रंथ आवश्यकसूत्र को व्याख्यारूप है। इसमें केवल प्रथम अध्ययन अर्थात् सामायिक से संबन्धित नियुक्ति की गाथाओं का विवेचन किया गया है। उपोद्घात: सर्वप्रथम आचार्य ने प्रवचन को प्रणाम किया है एवं गुरु के उपदेशानुसार सकल चरण-गुणसंग्रहरूप आवश्यकानुयोग करने की प्रतिज्ञा की है। इसके फल १. (क) शिष्यहिताख्य बृहवृत्ति (मलधारी हेमचन्द्रकृत टीका) सहित-यशो विजय जैन ग्रन्थमाला, बनारस, वीर संवत् २४२७-२४४१. (ख) गुजराती अनुवाद-आगमोदय समिति, बम्बई, सन् १९२४-१९२७. (ग) विशेषावश्यकगाथानामकारादिः क्रमः तथा विशेषावश्यकविषयाणाम नुक्रमः-आगमोदय समिति, बम्बई, सन् १९२३. (घ) स्वोपज्ञ वृत्तिसहित (प्रथम भाग)-लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अहमदाबाद, सन् १९६६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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