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भाष्य और भाष्यकार
१२५ सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि व्यवहारभाष्यकार आचार्य जिनभद्र से भी पहले हुए हैं।
सीहो तिविट्ठ निहतो, भमिउं रायगिह कवलिबडुग ति । जिणवर कहणमणुवसम; गोयमोवसम दिक्खा य ॥
-व्यवहारभाष्य, १९२..
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