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________________ १०८ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास जो वीरवर वर्धमानस्वामी के बताये हुए इस मार्ग पर चलता है उसे शाश्वत "शिवपद की प्राप्ति होती है। यहाँ ब्रह्मचर्य नामक प्रथम श्रुतस्कन्ध की नियुक्ति . समाप्त होती है। *द्वितीय श्रुतस्कन्ध : प्रथम श्रुतस्कन्ध में नौ ब्रह्मचर्याध्ययनों का प्रतिपादन किया गया। उनमें समस्त विवक्षित अर्थ का अभिधान न किया जा सका। जो अभिधान किया गया वह भी बहुत ही संक्षेप में किया गया। इसी बात को दृष्टि में रखते हुए द्वितीय श्रु तस्कन्ध की रचना की गई। आचारांग के परिमाण की चर्चा करते समय इस ओर निर्देश किया गया था कि इनमें नौ ब्रह्मचर्याभिधायी अध्ययन हैं, अष्टादश सहस्र पद हैं और पांच चूडाएं अर्थात् चूलिकाएं हैं । चूलिका का स्वरूप बताते हुए शीलांकाचार्य कहते हैं : 'उक्तशेषानुवादिनी चूडा' अर्थात कह चुकने पर जो कुछ शेष रह जाता है उसका कथन चूलिका कहलाता है । द्वितीय श्रुतस्कन्ध को अग्रश्रुतस्कन्ध भी कहते हैं। नियुक्तिकार 'अन' शब्द का निक्षेप करते हुए कहते हैं कि अग्न आठ प्रकार का होता है : १. द्रव्याग्र, २. अवगाहनान, ३. आदेशान, ४. कालान , ५. क्रमान, ६. गणनाग्र, ७. संचयान, ८. भावान । भावाग्र पुनः तीन प्रकार का है : प्रधानान, प्रभूतान और उपकाराग्र । प्रस्तुत अधिकार उपकाराग्र का है। चलिकाओं का परिमाण इस प्रकार है : 'पिण्डैषणा' अध्ययन से लेकर 'अवग्रहप्रतिमा' अध्ययनपर्यन्त सात अध्ययनों की प्रथम चूलिका है, सप्त सप्तिका नामक द्वितीय चूलिका है, भावना नामक तृतीय चूलिका है, चतुर्थ -चूलिका का नाम विमुक्ति है, निशीथ पंचम चूलिका है।" प्रथम चूलिका के सात अध्ययनों के नाम ये हैं : १. पिण्ड, २. शय्या, ३. ईर्या, ४. भाषा, ५. वस्त्र, ६. पात्र, ७. अवग्रह । नियुक्तिकार ने इनकी नामादि निक्षेपों से व्याख्या की है । ६ आगे की गाथाओं में सप्तसप्तिका, भावना और विमुक्ति का विशेष व्याख्यान है। निशीथ चूलिका के विषय में आचार्य कहते हैं कि इसकी नियुक्ति में बाद में करूँगा।' यह नियुक्ति निशीथनियुक्ति के रूप में अलग से उपलब्ध थो जो बाद में निशोथभाष्य में मिल गई। १. गा. २८४. ...४. गा. २८५-६. ७. गा. ३२३-३४६. २. गा. ११. ५. गा. २९७ ८. गा. ३४७. ३. गा. ११ की वृत्ति. ६. गा. २९८-३२२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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