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________________ जीवाजीवाभिगम शोभित हैं । इनके ऊपर रजस्त्राण चिछे हैं और फिर उन पर दुकूल विछाये गये हैं। सिंहासन श्वेत वर्ण के विजयदृष्य से आच्छादित हैं। उनके बीचों बीच अंकुश ( खूँटी ) लगे हैं जिन पर मोतियों की एक बड़ी माला लटक रही है और इस माला के चारों ओर चार मालाएँ हैं । प्रासादावतंसक अष्ट मंगल आदि से शोभित हैं' ( १३० ) । विजयद्वार के दोनों ओर दो-दो तोरण लगे हुए हैं। उनके सामने दो-दो शालभंजिकाएँ और नागदंत हैं; नागदन्तों में मालाएँ लटकी हैं । तोरणों के सामने हयसंघाटक, हयपंक्ति, पद्मलता आदि लताएँ चित्रित की हुई हैं तथा चन्दनकलश और झारियाँ रखी हुई हैं । फिर दो आदर्श ( दर्पण ), शुद्ध और श्वेत चावलों से भरे थाल, शुद्ध जल और फलों से भरी पात्री, औषधि आदि से पूर्ण सुप्रतिष्ठक तथा मनोगुलिका (आसन) और करंडक ( पिटारे ) रखे हुए हैं । फिर दो-दो हयकंठ ( रत्नविशेष, टीकाकार ) आदि रखे हैं जिनमें बहुत सी टोकरियाँ हैं जो पुष्पमाला, चूर्ण, वस्त्र और आभरणों से भरी हैं । फिर सिंहासन, छत्र, चामर, तेल, कोष्ठ आदि सुगंधित पदार्थ सजे हुए हैं? ( १३१ ) 1 ७७ सुधर्मा सभा - विजयद्वार की विजया राजधानी में विजय नामक देव रहता है ( १३४-५ ) । विजय की सुधर्मा सभा' अनेक खंभों के ऊपर प्रतिष्ठित है और वेदिका से शोभित है। इसमें तोरण लगे हुए हैं और शालभंजिकाएँ दिखाई देती हैं। इसका फर्श मणि और रत्नों से खचित है । इसमें ईहामृग आदि के चित्र बने हैं और खंभों के ऊपर बनी हुई वेदिकाएँ विद्याधरों के युगल से शोभायमान हैं । यहाँ चंदनकलश रखे हुए हैं, मालाएँ और पताकाएँ टँगी हुई हैं तथा देवांगनाएँ नृत्य कर रही हैं ( १३७ ) । सिद्धायतन -- सुधर्मा सभा के उत्तर-पूर्व में सिद्धायतन है । पीठिका है जिसपर अनेक जिनप्रतिमाएँ विराजमान हैं । चॅवर और दंडधारी प्रतिमाएँ हैं । इनके आगे नाग, यक्ष, भूत और कुण्डधार Jain Education International १. रायपसेणइय ( ४२-४३ ) में भी यही वर्णन है । २. रायपसेणइय ( १०६ ) में भी यही वर्णन है । ३. भरहुत की बौद्ध कला में सुधर्मा देवसभा का अंकन किया गया हैमोतीचन्द, आर्किटेक्चरल डेटा इन जैन केनोनिकल लिटरेचर, द जर्नल ऑफ द यू० पी० हिस्टोरिकल सोसायटी, १९४९, पृ० ७९. For Private & Personal Use Only उसके बीच एक इनके पीछे छत्र, www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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