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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास रखना । यदि अग्नि बुझ जाय तो लकड़ियों को घिसकर आग जला लेना।" संयोगवश उसके साथियों के चले जाने पर थोड़ी ही देर बाद आग बुझ गई। अपने साथियों के आदेशानुसार वह लकड़ियों को चारों ओर से उलट-पुलट कर देखने लगा लेकिन आग कहीं नजर न आई । उसने अपनी कुल्हाड़ी से लकड़ियों को चीरा, उनके छोटे-छोटे टुकड़े किये, लेकिन फिर भी आग दिखाई न दी। वह निराश होकर बैठ गया और सोचने लगा कि देखो, मैं अभी तक भी भोजन तैयार नहीं कर सका। इतने में जंगल में से उसके साथी लौट कर आ गये । उसने उन लोगों से सारी बात कही। इस पर उनमें से एक साथी ने शर को अरणि के साथ घिसकर अग्नि जलाकर दिखाई और फिर सबने भोजन बना कर खाया । हे पएसी ! जैसे लकड़ी को चीर कर आग पाने की इच्छा रखने वाला उक्त मनुष्य मूर्ख था, वैसे ही शरीर को चीर कर जीव देखने की इच्छा रखने वाला तू भी कुछ कम मूर्ख नहीं है ( १७९-१८२ )।
पएसी-भंते ! जैसे कोई व्यक्ति अपनी हथेली पर आमला रख कर दिखा दे, क्या वैसे ही आप जीव को दिखा सकते हैं ?
केशी-वीतराग ही धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, अशरीरी जीव, परमाणु-पुद्गल, शब्द, गंध और वायु-इन आठ पदार्थों को जान सकते हैं, अल्पज्ञानी नहीं ( १८६)।
पएसी-भंते ! क्या हाथी और कुंथु ( एक कीड़ा) में एक-समान जीव होता है ?
केशी-हाँ, एक-समान होता है। देखो, यदि कोई व्यक्ति चारों ओर से बन्द किसी कूटागारशाला में दीपक जलाये तो दीपक सारी कूटागारशाला को प्रकाशित करेगा और यदि उसी दीपक को किसी थाली आदि से ढक कर रख दिया जाय तो वह थाली जितने भाग को ही प्रकाशित करेगा। इसका मतलब यह हुआ कि दीपक तो दोनों जगह वही है, लेकिन यदि वह बड़े ढक्कन के नीचे रखा हो तो अधिक भाग को, और छोटे ढक्कन के नीचे रखा हो तो कम भाग को प्रकाशित करता है । यही बात जीव के सम्बन्ध में समझनी चाहिए (१८७) ।
केशीकुमार की धर्मकथा श्रवण कर राजा पएसी की शंकाएँ दूर हो गई। अब वह श्रमणोपासक हो गया और अपने राज्य, राष्ट्र, बल, वाहन, भंडार, कोठार, ग्राम, नगर और अन्तःपुर की ओर से उदासीन रहने लगा।
रानी सूर्यकान्ता ने देखा कि राजा विषय-भोगों की ओर से उदासीन रहने लगा है तो वह उसे विष-प्रयोग आदि द्वारा मारकर अपने पुत्र को राजगद्दी पर
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