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राजप्रश्नीय
सकता, युवावस्था में उसकी शक्ति बढ़ जाती है। इसका तात्पर्य यह नहीं कि जीव और शरीर एक हैं।
(ख) पएसी-भन्ते ! कोई तरुण पुरुष लोहे, सीसे या जस्ते का भार भटी प्रकार वहन कर सकता है, लेकिन वृद्धावस्था को प्राप्त होने पर वही पुरुष लकड़ी लेकर चलने लगता है और भार वहन करने में असमर्थ हो जाता है। तरुणावस्था की भाँति यदि वृद्धावस्था में भी वह भार वहन करने योग्य रहता तो यह बात समझ में आ सकती थी कि जीव और शरीर दोनों भिन्न हैं।
केशी-देखो, हृष्ट-पुष्ट पुरुष ही भार वहन कर सकता है। यदि किसी दृष्ट पुष्ट पुरुष के पास नई बहँगी आदि उपकरण मौजूद हैं तो वह अच्छी तरह भार उठा कर ले जा सकेगा, लेकिन यदि उसके पास पुरानी बहँगी आदि हो तो नहीं ले जा सकेगा। यही बात तरुण पुरुष और वृद्ध पुरुष के बारे में समझनी चाहिए । इससे सिद्ध होता है कि जीव और शरीर भिन्न हैं ( १७५-१७८)। चौथी युक्तिः
(क) पएसी-अच्छा भन्ते ! एक दूसरा प्रश्न पूछने की आज्ञा दें। किसी चोर को जीवित अवस्था में तौलें और फिर उसे मार कर तौलें, दोनों अवस्थाओं में चोर के वजन में कोई अन्तर नहीं पड़ता। इससे जीव और शरीर की अभिन्नता ही सिद्ध होती है।
केशी-जैसे खाली और हवा-भरी मशक के वजन में कोई अन्तर नहीं पड़ता' इसी प्रकार जीवित पुरुष और मृतक पुरुष के वजन में कोई अन्तर नहीं पड़ता । जीव में अगुरुलघु गुण मौजूद है इसलिए जीव के निकल जाने से मृतक का वजन कम नहीं होता।
(ख ) पएसी-एक बार मैंने किसी चोर के शरीर की चारों ओर से परीक्षा की, लेकिन उसमें कहीं भी जीव दिखाई न दिया । फिर मैंने उसे काटा, छाँटा और उसे चीर कर देखा, लेकिन फिर भी जीव कहीं दिखाई न पड़ा । इससे जीव का अभाव ही सिद्ध होता है ।।
केशी-तू बड़ा मूढ मालूम होता है परसी ! देख, एक उदाहरण देकर समझाता हूँ। एक बार कुछ वनजीवी साथ में अग्नि लेकर एक बड़े जंगल में पहुँचे। उन्होंने अपने एक साथी से कहा : "हे देवानुप्रिय ! हम जंगल में लकड़ी लेने जाते हैं, तू इस अग्नि से आग जलाकर हमारे लिए भोजन बनाकर तैयार
--विज्ञान ने सिद्ध कर दिया है कि हवा में भी वजन होता है, इसलिए यह युक्ति संगत नहीं मालूम होती।
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