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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास हूँ, मुझे यह रुचिकर है, यह सत्य है, यह इष्ट है। कितने ही उग्र, भोग और इभ्य आदि विपुल हिरण्य, सुवर्ण, धन, धान्य, बल, वाहन, कोश और धनसम्पत्ति का त्याग कर, मुंड होकर अनगार धर्म में दीक्षित होते हैं, किन्तु मैं ऐसा करने के लिए असमर्थ हूँ। ऐसी हालत में हे देवानुप्रिय ! मैं आपसे पाँच अणुव्रत
और सात शिक्षाबत ग्रहण कर गृहीधर्म का पालन करना चाहता हूँ। तत्पश्चात् चित्त सारथी निर्ग्रन्थ प्रवचन में श्रद्धाशील, दानशील होता हुआ चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस और पूर्णिमा के दिन प्रोषध करता हुआ तथा निर्ग्रन्थ श्रमगों को निदोप अशन, पान, आसन, शय्या आदि से निमन्त्रित करता हुआ आत्मचिंतन में लीन रहने लगा (१५०-१५१)।
कुछ समय बाद जितशत्रु ने राजा पएसी को कुछ नजराना भेजने का विचार किया। चित्त सारथी को बुलाकर उसने आदेश दिया-" हे चित्त ! तुम इस नजराने को राजा पए सी को दो और निवेदन करो कि मेरे योग्य कोई कार्यसेवा हो तो कहला भेजें ।" सेयविया के लिए प्रस्थान करने के पूर्व चित्त सारथी ने केशीकुमार के पास पहुँचकर निवेदन किया-"भंते ! जितशत्रु से विदा लेकर आज मैं लौट रहा हूँ । सेयविया नगरी सुन्दर है, दर्शनीय है, आप पधारें तो बड़ी कृपा हो।" पहले तो केशीकुमार ने चित्त की बात पर कोई ध्यान न दिया । लेकिन जब उसने उसी बात को दो-तीन बार दुहराया तो केशीकुमार ने उत्तर दिया कि भले ही सेयविया सुन्दर हो, लेकिन वहाँ का राजा अधार्मिक है, फिर भला वहाँ मैं कैसे आ सकता हूँ ? चित्त ने निवेदन किया-भंते ! आपको पएसी से क्या लेना-देना है ? सेयविया में अन्य बहुत से सार्थवाह आदि निवास करते हैं जो आपकी वन्दना उपासना करेंगे और अशन-पान तथा आसन-शय्या आदि से आपका सत्कार करेंगे। इसलिए आप कृपाकर अवश्य पधारें ( १५२.१५४ )।
चित्त सारथी अपने रथ में सवार होकर सेयविया नगरी पहुँच गया । वहाँ पहुँचते ही उसने मृगवन के उद्यानपालक को बुलाकर कहा-देखो, यदि पार्वापत्य केशीकुमार विहार करते हुए यहाँ पधारें तो उनके रहने के लिए योग्य स्थान का प्रबन्ध करना और पीठ (चौकी ), फलक ( पट्टा ), शय्या और संस्तारक द्वारा उन्हें निमंत्रित करना। तत्पश्चात् चित्त सारथी ने राजा पएसी के पास पहुँचकर उसे नजराना भेंट किया (१५५-१५६)।
कुछ दिनों बाद केशीकुमार श्रावस्ती नगरी से विहार कर गये और गाँवगाँव में परिभ्रमण करते हुए सेयविया नगरी के मृगवन नामक चैत्य में पधारे। उद्यानपालक ने पीठ, फलक आदि से उनका सत्कार किया और चित्त सारथी
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