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________________ राजप्रश्नीय ५३ राजा पएसी की कथा : केकय अर्ध जनपद' में सेयविया नाम की नगरी थी। उसके उत्तर-पूर्व में मृग. वन नाम का एक सुन्दर उद्यान था । इस नगरी का राजा पएसी था । वह बड़ा अधार्मिक, प्रचण्ड और क्रोधी था, तथा माया, वंचना और कूट-कपट द्वारा सबको कष्ट पहुँचाता था। गुरुजनों का वह कभी आदर न करता, श्रमणब्राह्मणों का विश्वास न करता और समस्त प्रजा को उसने कर के भार से पीड़ित कर रखा था । उसकी रानी का नाम सूर्यकान्ता था। राजा पएसी के सूर्यकान्त नामक एक राजकुमार था जो उसके राज्य, राष्ट्र, बल, वाहन, कोश, कोष्ठागार, पुर और अंतःपुर की देखभाल किया करता था। राजा पएसी के सारथी का नाम चित्त था। वह साम, दाम, दण्ड और भेद में कुशल और अत्यन्त बुद्धिशाली था। राजा पएसी अपने राज्य के अनेक कामों में उसकी सलाह लेता और उसे बहुत मानता था ( १४२-१४५ )। कुणाला जनपद में श्रावस्ती नाम की नगरी थी। उसके उत्तर-पूर्व में कोष्ठ नाम का एक चैत्य था। उस समय राजा पएसी का आज्ञाकारी सामंत जितशत्रु श्रावस्ती में राज्य करता था। १. जैन ग्रन्थों में २५३ देशों की गणना आर्य क्षेत्र में की गयी है अर्थात् इन देशों में जैन श्रमण विहार कर सकते थे । केकयार्ध को आर्य क्षेत्र मानने का कारण यही हो सकता है कि इस देश के कुछ ही भाग में श्रमणों का प्रभाव रहा होगा । केकय देश श्रावस्ती के उत्तर-पूर्व नेपाल की तराई में था। सेयविया को बौद्ध साहित्य में सेतव्या कहा गया है। महावीर ने यहां विहार किया था। यह स्थान श्रावस्ती (सहेट महेट) से १७ मील और बलरामपुर से ६ मील की दूरी पर अवस्थित था । २. बौद्धों के दीघनिकाय में पायासिसुत्त में राजा पायासि के इसी प्रकार के प्रश्नोत्तरों का वर्णन है। यहाँ पायासि को कोशल के राजा पसेनदि का वंशधर बताया गया है। ३. दीघनिकाय में चित्त के स्थान पर खत्ते शब्द का प्रयोग किया गया है। खत्ते का पर्यायवाची संस्कृत में क्षत-क्षता होता है जिसका अर्थ सारथि है, देखिये-पं० बेचरदास, रायपसेणइयसुत्त का सार, पृ० ९९ फुटनोट । ४. कुणाल को जैनों के २५१ आर्य देशों में गिना गया है। इसको उत्तर कोशल भी कहा जाता था। कुणाल जनपद की राजधानी श्रावस्ती (सहेट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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