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राजप्रश्नीय
२५-अंचित। २६-रिभित । २७-अंचिरिभित । २८-आरभट। २९-भसोल ( अथवा भसल) । ३०-आरभटभसोल ।
३१-उत्पात, निपात, संकुचित, प्रसारित, रयारइय', भ्रांत और सभ्रांत क्रियाओं से सम्बन्धित अभिनय ।।
३२-महावीर के च्यवन, गर्भसंहरण, जन्म, अभिषेक, बालक्रीड़ा, यौवनदशा, कामभोगलीला', निष्क्रमण, तपश्चरण, ज्ञानप्राप्ति, तीर्थप्रवर्तन और परिनिर्वाण सम्बन्धी घटनाओं का अभिनय (६६-८४ )।
देवकुमार और देवकुमारियाँ तत, वितत, घन और शुषिर' नामक वादित्र बजाने लगे; उत्क्षिप्त, पादान्त', मंद और रोचित नामक गीत गाने लगे; अंचित,
१. नाट्यशास्त्र में उल्लेख है। २. नाट्यशास्त्र में आरभटी एक वृत्ति का नाम बताया गया है। ३. नाट्यशास्त्र में भ्रमर । ४. नाट्यशास्त्र में रेचित । जम्बूद्वीपप्रज्ञपि में रेचकरचित पाठ है। आरभटी
शैली से नाचने वाले नट मंडलाकार रूप में रेचक अर्थात् कमर, हाथ, ग्रीवा को मटकाते हुये रास नृत्य करते थे-वासुदेवशरण अग्रवाल,
हर्षचरित, पृ० ३३. ५. इससे महावीर की गृहस्थावस्था का सूचन होता है। ६. पटह आदि वाद्य तत, वीणा आदि वितत, कांस्यताल अदि घन और शंख
आदि शुषिर के उदाहरण समझने चाहिये। चित्रावली (७३-८) में तंत और वितंत का उल्लेख है। तंत अर्थात् तार के और वितंत अर्थात्
बिना तार के मढ़े हुए बाजे । ७. जीवाजीवाभिगम (पृ० १८५ अ) में पायंत की जगह पक्त्तय (प्रवृत्तक)
पाठ है। ८. गीत को सप्तस्वर और अष्टरस संयुक्त, छः दोषरहित और आठ गुणसहित
बताया गया है-देखिये, जीवाजीवाभिगम, पृ० १८५ अ ।
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