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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
५.
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- चन्द्रावलिका प्रविभक्ति, सूर्यावलिका प्रविभक्ति, वलयावलिका प्रविभक्ति, हंसावलिका' प्रविभक्ति, एकावलिका प्रविभक्ति, तारावलिका प्रविभक्ति, मुक्तावलिका प्रविभक्ति, कनकावलिका प्रविभक्ति और रत्नावलिका प्रविभक्ति का अभिनय |
४८
६ - चन्द्रोद्गमन दर्शन और सूर्योद्गमन दर्शन का अभिनय ।
७ - चन्द्रागम दर्शन, सूर्यागम दर्शन का अभिनय ।
८ - चन्द्रावरण दर्शन, सूर्यावरण दर्शन का अभिनय ।
९ -- चन्द्रास्त दर्शन, सूर्यास्त दर्शन का अभिनय ।
१०- चन्द्रमण्डल, सूर्यमण्डल, नागमण्डल, यक्षमण्डल, भूतमण्डल, राक्षसमण्डल, गन्धर्वमण्डल' के भावों का अभिनय |
११- द्रुतविलम्बित अभिनय । इसमें वृषभ और सिंह तथा घोड़े और हाथी की ललित गतियों का अभिनय है ।
१२ - सागर और नागर के आकारों का अभिनय ।
१३ - नन्दा और चम्पा का अभिनय ।
२१- पद्मनाग, अशोक, चंपक, आम्र, वन, वासन्ती, कुन्द, अतिमुक्तक और श्यामलता का अभिनय ।
१.
२.
१४- मत्स्यांड, मकरांड, जार और मार की आकृतियों का अभिनय ।
१५- क, ख, ग, घ, ङ की आकृतियों का अभिनय ।
१६ - चवर्ग की आकृतियों का अभिनय |
१७ - टवर्ग की आकृतियों का अभिनय |
१८- पवर्ग की आकृतियों का अभिनय ।
१९ - अशोक, आम्र, जंबू, कोशव के पलवों का अभिनय ।
२०- तवर्ग की आकृतियों का अभिनय ।
३.
२२- द्रुतनाट्य' ।
२३- बिलंबित नाट्य ।
२४ - द्रुतविलंबित नाड्य ।
भरत के नाट्यशास्त्र में हंसवक्त्र और हंसपक्ष ।
नाट्यशास्त्र में २० प्रकार के मण्डल बताये गये हैं । यहाँ गन्धर्व नाट्य का
उल्लेख है ।
नाट्यशास्त्र में द्रुत नामक लय का उल्लेख है ।
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