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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास उन्हें नमस्कार कर अपना परिचय दिया । वैक्रियसमुद्घात' द्वारा उन्होंने संवर्तक वायु की रचना की और उसके द्वारा भगवान् के आसपास की भूमि को झाड़-पोंछ कर स्वच्छ कर दिया । कृत्रिम मेघों के द्वारा सुगंधित जल का छिड़काव किया, पुष्पों की वर्षा की तथा अगर आदि सुगंधित पदार्थ जलाकर उस स्थान को महका दिया ( १९-२३)।
तत्पश्चात् आभियोगिक देव भगवान् को नमस्कार कर सौधर्म स्वर्ग में लौट गये और उन्होंने सूर्याभदेव को सूचित किया। सूर्याभदेव ने अपने सेनापति को बुलाकर आज्ञा दी-"हे देवानुप्रिय ! सुधर्मा-सभा में टंगे हुए घंटे को जोर-जोर से बजाकर निम्नलिखित घोषणा करो-'हे देवो ! सूर्याभदेव आमलकप्पा नगरी के बाहर आम्रशालवन चैत्य में बिहार करते हुए श्रमण भगवान् महावीर के वंदनार्थ गमन करने के लिए प्रस्तुत हैं, तुम लोग भी अपनी समस्त ऋद्धि और परिवार के साथ अपने-अपने यानों में सवार होकर चलने के लिए तैयार हो जाओ'।" इस समय अपने-अपने विमानों में रहनेवाले देवी-देवता रति-क्रीड़ा और भोग-विलास में लीन थे। घंटे का शब्द सुनकर उन्हें बड़ा कौतूहल हुआ.और वे सूर्याभदेव के साथ महावीर के वंदनार्थ जाने की तैयारी करने लगे। कोई सोचने लगा, हम महावीर भगवान् की वंदना करेंगे, कोई कहने लगा, हम पूजा करेंगे, हम दर्शन करेंगे, हम अपना कुतूहल शान्त करेंगे, हम अर्थ का निर्णय करेंगे, अश्रुत बात को सुनेंगे, श्रुत बात का निश्चय करेंगे और भगवान् के समीप जाकर अर्थ, हेतु और कारणों को समझेंगे ( २४-२७)।
देव और देवियों को समय पर उपस्थित हुए देख, सूर्याभदेव प्रसन्न हुआ। आमियोगिक देवों को बुलाकर उसने आदेश दिया-“हे देवानुप्रियो.! तुम शीघ्र ही एक सुन्दर विमान (प्रासाद ) तैयार करो। इसमें अनेक खम्भे लगाओ, हाव-भाव प्रदर्शित करने वाली शालभंजिकाएं' ( पुतलियाँ) प्रतिष्ठित करो, ईहामृग, वृषभ, घोड़े, मनुष्य, मगर, पक्षी, सर्प, किन्नर, शरभ, चमरी गाय,
१. समुद्धात सात होते हैं-वेदन, कषाय, मरण, वैक्रिय, तेजस, आहारक और
केवली। देवों के वैक्रियसमुद्रात होता है। विशेष के लिये देखिये-पन्न
वणासूत्र में समुद्रात पद। २. शालभंजिकाओं के वर्गन के लिये देखिये-सूत्र १०१. शालभंजिका नामक . स्योहार श्रावस्ती में मनाया जाता था (अवदानशतक ६,५३, पृ० ३०२)।
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