SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ औपपातिक आजीविक: दुघरंतरिया-एक घर में भिक्षा ग्रहण कर दो घर छोड़ कर भिक्षा लेनेवाले । तिघरंतरिया-एक घर में भिक्षा ग्रहण कर तीन घर छोड़ कर भिक्षा लेनेवाले। सत्तघरंतरिया-एक घर में भिक्षा ग्रहण कर सात घर छोड़ कर भिक्षा लेनेवाले। उप्पलबटिया-कमल के डंठल खाकर रहनेवाले। घरसमुदाणिय-प्रत्येक घर से भिक्षा लेनेवाले । विज्जुअंतरिया-बिजली गिरने के समय भिक्षा न लेनेवाले। उट्टियसमण-किसी बड़े मिट्टी के बर्तन में बैठकर तप करनेवाले । ये श्रमण' मर कर अच्युत स्वर्ग में उत्पन्न होते हैं। अन्य श्रमण : अत्तक्कोसिय-आत्मप्रशंसा करनेवाले। परपरिवाइय-परनिन्दा करनेवाले; अवर्णवादी । भूइकम्मिय-ज्वरग्रस्त लोगों को भूति ( राख ) देकर निरोग करनेवाले । भुज्जो भुज्जो कोउयकारक-सौभाग्य वृद्धि के लिए बार-बार स्नान आदि करनेवाले । १. आजीविक मत के अनुयायी गोशाल और महावीर के साथ-साथ रहने का उल्लेख भगवतीसूत्र (१५) में आता है। आजीविक मत का जन्म गोशाल से ११७ वर्ष पूर्व हुआ था। गोशाल आठ महानिमित्तों का ज्ञाता था तथा आर्य कालक ने आजीविक श्रमणों से निमित्तविद्या का अध्ययन किया था (पंचकल्पचूर्णि, पं० कल्याणविजय के 'श्रमण भगवान महावीर', पृ० २६० में उल्लिखित)। स्थानांग (४-३०९) में आजीविकों के उग्र तप का वर्णन है। विशेष के लिए देखिये-जगदीशचन्द्र जैन, लाइफ इन एशियेंट इंडिया, पृ० २०७ आदि, जैन आगम में भारतीय समाज, पृ० ४१९-४२१, तथा ए. एल. बाशम, हिस्ट्री एण्ड डाक्ट्रीन्स ऑफ द आजीविकाज़ । २. भगवती (१-२) में इन्हें किल्विषक कहा गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy