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________________ ३० जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ६९–कडच्छेज्ज ( अनेक वस्तुओं को क्रमशः छेदना ), ७० - सज्जीव ( मृत धातुओं को स्वाभाविक रूप में लाना ), ७१ - निज्जीव' ( सुवर्ण आदि धातुओं को मारना ), ७२ - सउणरुअ' ( शकुन और विभिन्न आवाजों का ज्ञान ) । कलाओं की शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् दृढप्रतिज्ञ के माता-पिता ने कलाचार्य को विपुल भोजन, पान तथा वस्त्र अलंकार आदि से सन्मानित कर प्रीतिदान दिया । दृढप्रतिज्ञ ७२ कलाओं का पण्डित, १८ देशी भाषाओं में विशारद, गीत, गंधर्व और नाट्य में कुशल, हाथी, घोड़े और रथ पर बैठकर युद्ध करनेवाला, बाहुओं से युद्ध करनेवाला तथा अत्यन्त वीर और साहसी बन गया । कालान्तर में श्रमणधर्म स्वीकार कर उसने सिद्धगति प्राप्त की (४० ) नुसार इसका अर्थ है पत्तों के छेदन में हस्तलाघव प्रदर्शित करना - अष्टोत्तरशतपत्राणां मध्ये विवक्षित संख्याकपत्र च्छेदने हस्तलाघवम् । १. सजीव और निर्जीव का उल्लेख दशकुमारचरित ( काले संस्करण २, पृ० ६६ ) में मिलता है । चरक और सुश्रुत में धातुओं की मारणविधि दी हुई है। ४. २. इसका उल्लेख बृहत्संहिता (अध्याय ८७ ) में मिलता है । मूलसर्वास्तिवाद के विनयवस्तु में भी सर्वभूतरुत का उल्लेख है । ३. ७२ कलाओं में से बहुत सी कलाओं का एक-दूसरे में अन्तर्भाव हो जाता है । वात्स्यायन के कामसूत्र में ६४ कलाओं का उल्लेख है । इन कलाओं के साथ उपर्युक्त ७२ कलाओं की तुलना पं० बेचरदासजी ने अपनी 'महावीरनी धर्मकथाओ' ( पृ० १९३ आदि ) में की है । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति की टीका ( २, पृ० १३९ आदि ) में स्त्रियों की ६४ कलाओं की व्याख्या की गई है । कलाओं के लिए देखिये-नायाधम्मकहाओ ( १, पृ० २१ ), समवायांग ( पृ० ७७ अ ), रायपसेणइय ( सूत्र २११ ), जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिटीका ( पृ० २, १३६ आदि ), अमूल्यचन्द्रसेन, सोशल लाइफ इन जैन सिस्टम ऑफ एजुकेशन, पृ० ७४ आदि । मगध, मालव, महाराष्ट्र, लाट, कर्णाट, द्रविड, गौड़, विदर्भ आदि देशों में बोली जानेवाली भाषाएँ । जैन श्रमणों के लिए देशी भाषाओं का परिज्ञान आवश्यक बताया गया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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