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________________ भौपपातिक देवलोक से च्युत होकर अम्मड परिव्राजक महाविदेह में उत्पन्न हुआ । उसके जन्मदिवस की खुशी में पहले दिन ठिइवडिय' ( स्थितिपतिता ) उत्सव, दूसरे दिन चन्द्रसूर्यदर्शन और छठे दिन नागरिक ( रात्रिजागरण ) उत्सव मनाया गया । उसके बाद ग्यारहवें दिन सूतक बीत जाने पर बारहवें दिन नामसंस्करण किया गया और बालक दृढप्रतिज्ञ नाम से कहा जाने लगा । आठ वर्ष बीत जाने पर उसे शुभ तिथि और नक्षत्र में पढ़ने के लिए कलाचार्य के. पास भेजा गया । वहाँ उसे निम्नांकित ७२ कलाओं की शिक्षा दी गई: १ - लेह ( लेखन ), २ - गणिय ( गणित ), ३ - रूव ( चित्र बनाना ), ४—नट्टू ( नृत्य ), ५ - वाइय (वादित्र ), ६. -- सरगय ( सात स्वरों का ज्ञान ), - पोक्खरगय ( मृदंग वगैरह बजाने का ज्ञान ), 16 ८ - - समताल ( गीत आदि के समताल का ज्ञान ), ९ - जूय ( जूआ ), १० - जणवय ( एक प्रकार का जूआ ), ११ - पास ( पासे का ज्ञान ), १२ – अट्ठावय ( चौपड़ ), १३ - पोरेकव्व ( शीघ्रकवित्व ), १४ - दगमट्टिय ( मिश्रित द्रव्यों की पृथक्करण-विद्या ), - १५ - अण्णविहि ( पाकविद्या ), १६ - पाणविहि ( पानी स्वच्छ करने और उसके गुण-दोष परखने की विद्या, अथवा जल-पान की विधि ), १७ - वत्थविहि (वस्त्र पहनने की विद्या ), १८ - विणविहि ( केशर, चन्दन आदि के लेपन करने की विद्या ), २७. १९ - सण विहि ( पलंग, बिस्तरे आदि के परिमाण का ज्ञान अथवा शयन संबन्धी ज्ञान ), Jain Education International १. स्थितौ - कुलस्य लोकस्य वा मर्यादायां पतिता - गता या पुत्रजन्ममहाप्रक्रिया ( भगवती ११-११ टीका ) । २. महावीर का जन्म होने पर पहले दिन स्थितिपतिता, दूसरे दिन चन्द्रसूर्यदर्शन और छठे दिन धर्मजागरिका मनाने का उल्लेख है ( कल्पसूत्र For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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