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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास २०-अज (आर्या छंद के भेद-प्रभेदों का ज्ञान ), २१-पहेलिय (पहेली का ज्ञान ), २२-मागहिय (मागधी छंद का ज्ञान), २३-गाहा ( गाथा का ज्ञान ), २४-सिलोय (श्लोक के भेद-प्रभेदों का ज्ञान ), २५-हिरण्णजुत्ती (चाँदी के आभूषण पहनने का ज्ञान ), २६-सुवण्णजुत्ती (सुवर्ण के आभूषण पहनने का ज्ञान), २७-चुण्णजुत्ती ( स्नान, मंजन आदि के लिए चूर्ण बनाने की युक्ति), २८-आभरणविही (आभरण पहनने की विधि), २९-तरुणीपडिकम्म (युवतियों के सुन्दर होने की विधि), ३०-इत्थीलक्खण (स्त्रियों के लक्षण का ज्ञान), ३१-पुरिसलक्खण ( पुरुषों के लक्षण का ज्ञान ), ३२-हयलक्खण (घोड़ों के लक्षण का ज्ञान ), ३३-गयलक्खण ( हाथियों के लक्षण का ज्ञान ), ३४-गोणलक्खण ( गायों के लक्षण का ज्ञान), ३५---कुक्कुडलक्खण ( मुर्गों के लक्षण का ज्ञान ), ३६-चक्कलक्खण ( चक्र के लक्षण का ज्ञान), ३७-छत्तलक्खण (छत्र के लक्षण का ज्ञान ), ३८-चम्मलक्खण ( चमड़े के लक्षण का ज्ञान ), ३९-दंडलक्खण (दंड के लक्षण का ज्ञान ), ४०--असिलक्खण ( तलवार के लक्षण का ज्ञान ), ४१-मणिलक्खण' (मणि के लक्षण का ज्ञान), ५, पृ० ८१-८२)। नायाधम्मकहाओ (१, पृ० ३६ अ) में पहले दिन जातकर्म, फिर जागरिका, फिर चन्द्रसूर्यदर्शन आदि का उल्लेख है । भग. वतीसूत्र (११-११) में पहले दस दिन तक स्थितिपतिता, फिर चन्द्रसूर्यदर्शन, जागरिका, नामकरण, परंगामण (घुटने चलना), चंक्रमण, जेमामण, पिंडवर्धन, पजप्पावण (प्रजल्पन), कर्णवेध, संवत्सरप्रतिलेख (बरसगांठ),
चोलोपण (चूडाकर्म), उपनयन, कलाग्रहण आदि का उल्लेख है। ३. हय-गय-गोण-कुक्कुड-छत्त-असि-मणि और काकिणी लक्षण कलाओं की
व्याख्या बृहत्संहिता (क्रमशः अध्याय ६७, ६५, ६६, ६०, ६२, ७२, ४९ और ७९) में की गई है।
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