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अनुयोगद्वार
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दशनाम का स्वरूप बताया है।' यहाँ तक उपक्रम के द्वितीय भेद नाम का अधिकार है ।
प्रमाण - मान :
उपक्रम के तृतीय भेद प्रमाण का विवेचन करते हुए सूत्रकार कहते हैं कि प्रमाण चार प्रकार का होता है : द्रव्यप्रमाण, क्षेत्रप्रमाण, कालप्रमाण और भावप्रमाण ।
द्रव्यप्रमाण :
द्रव्यप्रमाण दो प्रकार का है : प्रदेशनिष्पन्न और विभागनिष्पन्न | परमाणु, द्विप्रदेशिक स्कन्ध, त्रिप्रदेशिकस्कन्ध, यावत् दशप्रदेशिकस्कन्ध आदि प्रदेशनिष्पन्न द्रव्यप्रमाणान्तर्गत हैं । विभागनिष्पन्न द्रव्यप्रमाण के पाँच भेद हैं : मान, उन्मान, अवमान, गणितमान और प्रतिमान । इनमें से मान दो प्रकार का है : धान्यमानप्रमाण और रसमानप्रमाण । धान्यमानप्रमाण के प्रसृति, सेतिका, कुडव, प्रस्थ, आढक, द्रोणी, जघन्यकुम्भ, मध्यमकुम्भ, उत्कृष्टकुम्भ, वाह आदि भेद हैं । इसी प्रकार रसमानप्रमाण के भी अनेक भेद होते हैं । उन्मान के अर्धक, कर्म अर्धपल, पल, अर्धतुला, तुला, अर्धभार, भार आदि भेद हैं । इनसे अगर, कुंकुम, खाँड, गुड़, मिश्री आदि वस्तुओं का प्रमाण देखा जाता है । जिससे भूमि आदि का माप किया जाता है उसे अवमान कहते हैं । इसके हस्त, दंड, धनुष आदि अनेक प्रकार हैं । गणितमान में संख्या से प्रमाण निकाला जाता है जैसे एक, दो, दस, सौ, हजार, दस हजार इत्यादि । इस प्रमाण से द्रव्य की आय-व्यय का हिसाब लगाया जाता है । प्रतिमान से स्वर्ण आदि का प्रमाण निकाला जाता है । इसके गुंजा, कांगनी, निष्पाव, कर्ममात्रक, मंडलक और सुवर्ण ( सोनैया ) आदि भेद हैं : तं जहा- गुंजा, कांगणी, निष्फावो, कम्ममासओ, मंडलओ, सुवण्णो । यहाँ तक द्रव्यप्रमाण की चर्चा है।
क्षेत्रप्रमाण :
क्षेत्रप्रमाण भी दो प्रकार का है : प्रदेशनिष्पन्न और विभागनिष्पन्न । एकप्रदेशावगाही, द्विप्रदेशावगाही आदि पुद्गलों से व्याप्त क्षेत्र को प्रदेशनिष्पन्न क्षेत्र
१. सू. ९५ - १४८ ( नामाधिकार ). २. सू. १-८ ( प्रमाणाधिकार ).
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