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नाम :
जैन साहित्य का वृहद् इतिहास
आनुपूर्वी का वर्णन करने के बाद नाम का विवेचन करते हुए सूत्रकार कहते हैं कि नाम दस प्रकार का होता है : एकनाम, द्विनाम, त्रिनाम, यावत् दशनाम । संसार के समस्त द्रव्यों के एकार्थवाची अनेक नाम होते हैं किन्तु उन सब का एक नाम में ही समावेश होता है । इसी का नाम एकनाम है । द्विनाम का दो प्रकार से प्रतिपादन किया जाता है : एकाक्षरिक नाम व अनेकाक्षरिक नाम । जिसके उच्चारण में एक ही अक्षर है वह एकाक्षरिक नाम है जैसे घी, स्त्री, श्री इत्यादि । जिसके उच्चारण में अनेक अक्षर हों उसे अनेकाक्षरिक नाम कहते हैं। जैसे कन्या, वीणा, लता, माला इत्यादि । अथवा द्विनाम के निम्नलिखित दो भेद हैं : जीवनाम और अजीवनाम अथवा अविशेषिक और विशेषिक । इनका प्रस्तुत सूत्र में विस्तृत विवेचन है । त्रिनाम तीन प्रकार का है : द्रव्यनाम, गुणनाम और पर्यायनाम । द्रव्यनाम के छः भेद हैं : धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और अद्धासमय ( काल ) । गुणनाम के पाँच भेद हैं : वर्णनाम, गन्धनाम, रसनाम, स्पर्शनाम और संस्थाननाम । इनके अनेक भेदप्रभेद हैं । पर्यायनाम अनेक प्रकार का है : एकगुणकृष्ण, द्विगुणकृष्ण, त्रिगुणकृष्ण यावत् दशगुणकृष्ण, संख्येयगुणकृष्ण, असंख्येयगुणकृष्ण, अनन्तगुणकृष्ण इत्यादि । चतुर्नाम चार प्रकार का है : आगमतः, लोपतः, प्रकृतितः और विकारतः । विभक्त्यन्त पद में वर्ण का आगम होता है जैसे पद्म का पद्मानि इत्यादि । यह आगमतः पद बनने का उदाहरण हुआ । वर्णों के लोप से जो पद बनता है उसे लोपतः पद बनना कहते हैं जैसे ते और अत्र का तेऽत्र, पटो और अत्र का पटोऽत्र इत्यादि । सन्धिकार्य के प्राप्त होने पर भी सन्धि का न होना
प्रकृतिभाव कहलाता है जैसे शाले एते, माले इमे इत्यादि । विकारतः पद बनने के • उदाहरण ये हैं : दण्डाग्र ( दण्ड + अग्र ), नदीह ( नदी + इह ), दधीदं ( दधि + इदं ), मधूदकं ( मधु -- उदकं ) इत्यादि । पञ्चनाम पाँच प्रकार का है : नामिक, नैपातिक, आख्यातिक, उपसर्गिक और मिश्र । इनका स्वरूप व्याकरणशास्त्र के अनुसार समझना चाहिए । घट्नाम छः प्रकार का है : औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, पारिणामिक और सन्निपातिक । इन छः प्रकार के भावों का सूत्रकार ने कर्मसिद्धान्त एवं गुणस्थान की दृष्टि से विस्तारपूर्वक विवेचन किया है । इसके बाद सप्तनाम ( के रूप में सप्तस्वर ), अष्टनाम ( के रूप में अष्टविभक्ति), नवनाम ( के रूप में नवरस ) एवं
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