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________________ जैन साहित्य का वृहद् इतिहास इस बुद्धि का स्वरूप समझाने के लिए पन्द्रह उदाहरण दिये गये हैं। ये उदाहरण भी अति रोचक हैं। कर्मजा बुद्धि एकाग्र चित्त से ( उपयोगपूर्वक ) कार्य के परिणाम को देखनेवाली, अनेक कार्यों के अभ्यास एवं चिन्तन से विशाल तथा विद्वजनों से प्रशंसित बुद्धि का नाम कर्मजा बुद्धि है : उवओगट्ठिसारा, कम्मपसंगपरिघोलणविसाला । साहुक्कारफलवई, कम्मसमुत्था हवइ बुद्धी ।। -गा. ७६. कर्मना बुद्धि का स्वरूप विशेष स्पष्ट करने के लिए सूत्रकार ने सुवर्णकार, कृषक, कौलिक, डोव अर्थात् दवीकार (लोहकार ), मणिकार, घृतविक्रेता, प्लवक-कूदनेवाला, तुन्नाग-सीनेवाला, वर्धकी-बढ़ई, आपूपिक-हलवाई, कुम्भकार, चित्रकार आदि कर्मकारों के उदाहरणों का निर्देश किया है। पारिणामिकी बुद्धिः अनुमान, हेतु और दृष्टान्त से विषय को सिद्ध करनेवाली, आयु के परिपाक से पुष्ट तथा ऐहौकिक उन्नति एवं मोक्षरूप निःश्रेयस् प्रदान करनेवाली बुद्धि का नाम पारिणामिकी बुद्धि है : अणुमाणहेउदिळेंतसाहिया, वयविवागपरिणामा। हियनिस्सेयसफलवई, बुद्धी परिणामिया नाम ।। -गा. ७८. इसका स्वरूप समझाने के लिए अभयकुमार, श्रेष्ठी, कुमार, देवी, उदितोदय राजा, साधु और कुमार नन्दिसेन, धनदत्त, श्रावक, अमात्य आदि के उदाहरण दिये गये हैं। यहाँ तक अश्रुतनिश्रित मतिज्ञान का अधिकार है।। श्रुतनिश्रित मतिज्ञान के भी चार भेद हैं : १. अवग्रह, २. ईहा, ३. अवाय, ४. धारणा । अवग्रह दो प्रकार का कहा गया है : अर्थावग्रह और व्यंजनावग्रह । व्यंजनावग्रह' चार प्रकार का है : १. श्रोत्रेन्द्रिय-व्यंजनावग्रह, 1. इन्द्रिय व पदार्थ के सम्बन्ध अर्थात् संयोग को व्यंजन कहते हैं। उस सम्बन्ध-संयोग से पदार्थ का जो अव्यक्त ज्ञान होता है वही व्यंजनावग्रह है। अर्थावग्रह पदार्थों के सामान्य ज्ञान का नाम है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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