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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
बीच में रोहक ने
लज्जित होकर सोचने लगा कि अहो ! मैंने व्यर्थ ही बालक के कहने से अपनी स्त्री के साथ अप्रीति का व्यवहार किया । इस प्रकार पश्चात्ताप करने के बाद भरत अपनी स्त्री से पूर्ववत् प्रेम-व्यवहार करने लगा । तब रोहक ने सोचा कि मेरे दुर्व्यवहार से अप्रसन्न हुई माता कदाचित् मुझे विष आदि देकर मार देगी, इसलिए अब अकेले भोजन नहीं करना चाहिए । यो सोचकर वह अपना खानापीना पिता के साथ ही करने लगा व हमेशा पिता के साथ ही रहने लगा । एक दिन कार्यवशात् रोहक अपने पिता के साथ उज्जयिनी गया । नगरी को देवपुरी की भाँति देखकर रोहक अति विस्मित हुआ और अपने मन में उसका पूरा चित्र खींच लिया | घर की ओर वापिस लौटते समय नगरी के बाहर निकलते ही भरत को कुछ भूली हुई चीज याद आई और उसे लेने के लिए रोहक को सिप्रा नदी के किनारे बैठाकर वापिस नगरी में चला गया । इसी नदी के किनारे की बालू पर सारी नगरी चित्रित कर दी । इधर घूमने आया हुआ राजा संयोगवश साथियों के मार्ग भूल जाने से अकेला ही उधर चला गया । उसे अपनी चित्रित नगरी के बीच से आते देख रोहक बोला - राजपुत्र ! इस रास्ते से मत आओ । राजा बोला - क्यों, क्या है ? रोहक ने उत्तर दिया- देखते नहीं ! यह राजभवन है जहाँ हर एक प्रवेश नहीं कर सकता । यह सुनकर कौतुक - वश हो राजा ने उसकी बनाई हुई सारी नगरी देखी और उससे पूछा- पहले भी तुमने कभी यह नगरी देखी है ? रोहक ने उत्तर दिया- कभी नहीं, आज ही गाँव से यहाँ आया हूँ । बालक की अद्भुत धारणाशक्ति व चातुरी देखकर राजा चकित हो गया और मन ही मन उसकी बुद्धि की प्रशंसा करने लगा । इसके बाद राजा ने रोहक से पूछा - वत्स ! तुम्हारा नाम क्या है ? तुम कहाँ रहते हो ? रोहक बोला- राजन् ! मेरा नाम रोहक है । मैं इस पास के नटों के गाँव में रहता हूँ । इस प्रकार दोनों की बात चल रही थी कि रोहक का पिता आ पहुँचा और पिता-पुत्र अपने गाँव को चले गये । राजा भी अपने भवन में चला गया ।
रोहक की घटना याद कर एक दिन राजा अपने मन में सोचने लगा कि मेरे एक कम पाँच सौ मन्त्री हैं। यदि इस मन्त्रिमण्डल में अत्यन्त बुद्धिमान् एक मूर्धन्य बड़ा मन्त्री और मिल जाये तो मेरा राज्य सुख से चलेगा । यो सोचकर राजा ने रोहक की बुद्धि परीक्षा प्रारम्भ की। एक दिन राजा ने उस गाँव के लोगों को आदेश दिया कि तुम सब मिलकर एक ऐसा मंडप बनाओ जो राजाके योग्य हो एवं तुम्हारे गाँव के बाहर वाली बृहत्तम शिला बिना उखाड़े जिसके आच्छादन के रूप में काम में ली जाए । राजा के इस आदेश से गाँववाले
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