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गन्दी
बुद्धि किसी प्रकार के पूर्व अभ्यास एवं अनुभव के बिना ही उत्पन्न होती है।' सूत्रकार ने इसका स्वरूप विशेष स्पष्ट करने के लिए अनेक रोचक दृष्टान्त दिये हैं । इन दृष्टान्तों को चूर्णिकार एवं हरिभद्र, मलयगिरि आदि टीकाकारों ने विस्तारपूर्वक लिखा है। यहाँ नमूने के तौर पर एक-एक दृष्टान्त उद्धृत किया जाता है:
उजयिनी के पास नटों का एक गाँव था। उसमें भरत नामक एक नट रहता था। उसकी स्त्री किसी रोग के कारण मर गई किन्तु अपने पीछे रोहक नामक एक छोटा बालक छोड़ गई । भरत ने अपनी व शिशु रोहक की सेवा के लिए दूसरा विवाह किया। रोहक की नई माँ रोहक के साथ ठीक व्यवहार नहीं करती जिससे दुःखी होकर रोहक ने एक दिन उसे कहा कि माँ! तू मेरे साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार नहीं करती, यह ठीक नहीं है । इस पर माँ बोली कि अरे रोहक ! मैं यदि तेरे साथ ठीक व्यवहार नहीं करती तो तू मेरा क्या बिगाड़ लेगा ? रोहक ने कहा कि मैं ऐसा करूँगा जिससे तुझे मेरे पाँव पर गिरना पड़ेगा। वह बोली कि अरे पाँव पर गिराने वाले ! जा, तुझे जो करना हो कर लेना। यह कह कर माँ चुप हो गई। रोहक अपनी करामात दिखाने का अवसर ढूँढने लगा। एक दिन रात्रि के समय वह अपने पिता के पास सोया हुआ था कि अचानक बोलने लगा-काका ! यह देखो, कोई आदमी दौड़ा जाता है। बालक की बात सुनकर नट को अपनी स्त्री के चारित्र के प्रति शंका हो गई। उसी दिन से उसने उसके साथ अच्छी तरह बोलना भी बन्द कर दिया और अलग सोने लगा। इस प्रकार पति को अपने से मुँह मोड़े हुए देखकर वह समझ गई कि यह सब रोहक की ही करामात है। बिना इसे प्रसन्न किये काम नहीं चलेगा। ऐसा सोच कर उसने अनुनयपूर्वक भविष्य के लिए सद्व्यवहार का आश्वासन दिलाते हुए बालक को संतुष्ट किया । प्रसन्न होकर रोहक भी पिता की शंका दूर करने के लिए एक दिन चाँदनी रात में अंगुली से अपनी छाया दिखाते हुए पिता से कहने लगा कि पिताजी ! देखो, यह कोई आदमी जा रहा है। सुनते ही नट ने उस पुरुष को मारने के लिए क्रोध में आकर म्यान से तलवार निकाली और बोला कि कहाँ है वह लंपट जो मेरे घर में घुस कर धर्म नष्ट करता है ? दिखा, अभी उसे इस लोक से बिदा कर देता हूँ। रोहक ने उत्तर में अंगुली से अपनी छाया दिखाते हुए कहा कि यह है वह लंपट । छाया को पुरुष समझने की बालचेष्टा देखते ही भरत १. गा. ६९. २. मुनि हस्तिमलकृत हिन्दी टीका, पृ०. ५४-६.
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