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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ही उपयोग में लेने का विधान है ), लोहे के तार आदि से बंधे हुए पात्र का उपयोग करना, दो कोस-अर्ध योजन से आगे पात्र की याचना करने जाना, अर्धयोजन के आगे से लाये हुए पात्र को ग्रहण करना, धर्म का अवर्णवाद (निन्दा) करना, अधर्म की प्रशंसा करना, अन्यतीर्थिक तथा गृहस्थ के पाँव आदि का प्रमार्जन करना, अंधकार आदि भयोत्पादक स्थान में जाकर अपने को भयभीत करना, अन्य किसी को डराना, स्वयं विस्मित होना एवं दूसरों को विस्मित करना, स्वयं संयम-धर्म से विमुख होना एवं दूसरों को उससे विमुख करना, अयोग्य स्त्री-पुरुष की स्तुति करना, विरुद्ध राज्य में आवागमन करना, दिवाभोजन की निन्दा एवं रात्रिभोजन की प्रशंसा करना, रात के समय भोजन करना, वासी (रात्रि में) आहारादि रखना अथवा बासी आहारादि का उपभोग करना (किसी कारण से वासी आहार रह भी जाये तो उसका उपयोग नहीं करना चाहिए ), मांस-मत्स्यादि विरूप आहार को देखकर उसे ग्रहण करने की आशा एवं इच्छा से अपना स्थान छोड़कर अन्यत्र जाना, नैवेद्यपिण्ड ( देवादि के लिए रखा हुआ आहारादि) का उपभोग करना, अयोग्य को दीक्षा देना, अयोग्य को बड़ी दीक्षा देना, अयोग्य साधु साध्वी की वेयावृत्य करना, अचेल (निर्वस्त्र) होकर सचेल (सवस्त्र) के साथ रहना, सचेल होकर अचेल के साथ रहना, अचेल होकर अचेल के साथ रहना (क्योंकि अचेल-जिनकल्पी अकेले ही रहते हैं), निम्नोक्त बालमरण अर्थात् अज्ञानजन्य मृत्यु की प्रशंसा करना : १. पर्वत से गिर कर मरना, २. रेत में प्रवेश कर मरना, ३. खड्डे में गिर कर मरना, ४. वृक्ष से गिर कर मरना, ५. कीचड़ में फंस कर मरना, ६. पानी में प्रवेश कर मरना, ७. पानी में कूद कर मरना, ८. अग्नि में प्रवेश कर मरना, ९. अग्नि में कूद कर मरना, १०. विष का भक्षण कर मरना, ११. शस्त्र से आत्महत्या करना, १२. इन्द्रियों के वश हो मृत्यु प्राप्त कर मरना, १३. तद्भव अर्थात् आगे पुनः उसी भव में उत्पन्न होने का आयुकर्म बाँध कर मरना, १४. अन्तःकरण में शल्य (माया, निदान अथवा मिथ्यात्व) रखकर मरना, १५. फाँसी लगाकर मरना, १६. मृतक के कलेवर में प्रवेशकर मरना, १७. संयमभ्रष्ट होकर मरना इत्यादि । बारहवाँ उद्देश :
प्रस्तुत उद्देश में लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त के योग्य निम्न क्रियाओं पर प्रकाश डाला गया है। करुणा अर्थात् अनुकम्पापूर्वक किसी त्रस प्राणी को तृणपाश, मुजपाश, काष्ठपाश, चर्मपाश, वेत्रपाश, रज्जुपाश, सूत्रपाश आदि से बाँधना, बँधे हुए प्राणी को छोड़ना, प्रत्याख्यान (त्यागविशेष ) का बारबार भंग करना,
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