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दशाश्रुतस्कन्ध
२३ एवं स्त्री विषयक भोगों में लिप्त रहता है वह महामोहनीय-कर्म बाँधता है। (१२) जो ब्रह्मचारी न होकर भी लोगों से कहता है कि मैं ब्रह्मचारी हूँ वह महामोहनीय से बद्ध होता है। (१३ ) जिसके आश्रय से, यश से अथवा अभिगम-सेवा से आजीविका चलती है उसी के धन पर लोभ दृष्टि रखने वाला महामोहनीय के बन्धन में फँसता है। (१४ ) किसी स्वामी ने अथवा गाँव के. लोगों ने किसी अनीश्वर अर्थात् दरिद्र को स्वामी बना दिया हो एवं उनकी सहायता से उसके पास काफी सम्पत्ति हो गई हो। ईर्ष्या एवं पाप से कलुषित चित्त वाला वह यदि अपने उपकारी के कार्य में अन्तराय-विघ्न उपस्थित करे तो उसे महामोहनीय-कर्म का भागी होना पड़ता है। (१५) जैसे सर्पिणी अपने अण्डसमूह को मारती है उसी प्रकार जो पुरुष अपने पालक, सेनापति अथवा प्रशास्ता (कलाचार्य अथवा धर्माचार्य) की हिंसा करता है वह महामोहनीयकर्म का उपार्जन करता है। (१६ ) जो राष्ट्र-नायक, निगम-नेता ( व्यापारियों का नेता) अथवा यशस्वी सेठ की हत्या करता है वह महामोहनीय कर्म का बन्धन करता है। (१७) जो बहुजन-नेता, बहुजन-त्राता अथवा इसी प्रकार के अन्य पुरुष की हत्या करता है वह महामोहनीय-कर्म का भागी होता है । (१८) जो दीक्षा लेने के लिए उपस्थित है, जिसने संसार से विरक्त होकर दीक्षा ग्रहण की है, जो संयत है, जो तपस्या में संलग्न है उसे बलात् धर्मभ्रष्ट करना महामोहनीय का बन्ध करना है। (१९) जो अज्ञानी पुरुष अनन्त ज्ञान और अनन्त दर्शन वाले जिनों की निन्दा-अवर्णवाद करता है वह महामोहनीय के बन्धन में फँसता है । (२०) जो न्याययुक्त मार्ग की निन्दा करता है एवं अपनी तथा दूसरों की आत्मा को उससे पृथक् करता है वह महामोहनीय-कर्म का उपार्जन करता है । (२१) जिन आचार्य-उपाध्याय की कृपा से श्रुत और विनय की शिक्षा प्राप्त हुई हो उन्हीं की निन्दा करने पर महामोहनीय कर्म का बन्ध होता है । ( २२) जो आचार्य उपाध्याय की अच्छी तरह सेवा नहीं करता वह अप्रतिपूजक एवं अहंकारी होने के कारण महामोहनीय-कर्म का उपार्जन करता है। (२३) जो वास्तव में अबहुश्रुत है किन्तु लोगों में अपने आपको बहुश्रुत के रूप में प्रख्यात करता है वह महामोहनीय के फंदे में फँसता है। (२४) जो वास्तव में तपस्वी नहीं है किन्तु लोगों के सामने अपने आपको तपस्वी के रूप में प्रकट करता है वह महामोहनीय के पाश में फँसता है । (२५) जो आचार्य आदि के रोग-ग्रस्त होने पर शक्ति रहते हुए भी उनकी सेवा नहीं करता वह महामोहनीय के बन्धन में बँधता है। (२६) जो हिंसायुक्त कथा का
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