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________________ २३. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास पाँच नक्षत्रों से सम्बन्धित भगवान् ऋषभदेव का भी संक्षिप्त जीवन-चरित्र प्रस्तुत किया गया है। स्थविरावली में भगवान् महावीर से लेकर देवर्द्धिगणि तक की गुरु-परम्परा का उल्लेख है । यह स्थविरावली नन्दी सूत्र की स्थविरावली से कुछ भिन्न है। मोहनीय-स्थान : नवम उद्देश में तीस मोहनीय-स्थानों का वर्णन है। मोहनीय वह कर्म है जो आत्मा को मोहित करता है अथवा जिसके द्वारा आत्मा मोहित होती है।' इस कर्म के परमाणुओं के संसर्ग से आत्मा विवेकशून्य हो जाती है। यह कर्म सब कर्मों में प्रधान है। सूत्रकार ने प्रस्तुत उद्देश की गाथाओं में तीस महामोहनीय-स्थानों का स्वरूप बताया है : (१) जो व्यक्ति पानी में डुबकियाँ लगाकर त्रस प्राणियों को मारता है वह महामोहनीय-कर्म की उपार्जना करता है । (२) जो व्यक्ति किसी प्राणी के मुखादि अंगों को हाथ से ढंककर अथवा अवरुद्ध कर जीव-हत्या करता है वह महामोहनीय-कर्म का उपार्जन करता है। (३) जो अग्नि जलाकर अनेक लोगों को घेर कर धूएँ से मारता है वह महामोहनीय-कर्म का बन्धन करता है। (४) जो किसी के सिर पर प्रहार करता है एवं मस्तक फोड़ कर उसकी हत्या कर डालता है वह महामोहनीय-कर्म के पाश में बँधता है। (५) जो किसी प्राणी के सिर आदि अंगों को गीले चमड़े से आवेष्टित करता है वह महामोहनीय कर्म का उपार्जन करता है । (६) जो बार-बार छल से किसी मूर्ख व्यक्ति को मार कर हँसता है वह महामोहनीय के बन्धन में बँधता है। (७) जो अपने दोषों को छिपाता है, माया को माया से आच्छादित करता है, झूठ बोलता है, सूत्रार्थ का गोपन करता है वह महामोहनीय का बन्धन करता है। (८) जो किसी को असत्य आक्षेप एवं स्वकृत पाप से कलंकित करता है वह महामोहनीय के पाश में बंधता है । (९) जो पुरुष जान-बूझ कर परिषद् में सत्य और मृषा को मिला कर कथन करता है एवं कलह का त्याग नहीं करता वह महामोहनीय के बन्धन में फंसता है। (१०) जो मन्त्री राजा की स्त्रियों अथवा लक्ष्मी को ध्वस्त कर अन्य राजाओं का मन उसके प्रतिकूल कर देता है एवं उसे राज्य से बाहर कर वयं राजा बन बैठता है वह महामोहनीय कर्म का बन्धन करता है । (११) जो यथार्थ में बाल-ब्रह्मचारी नहीं है फिर भी अपने आपको बाल-ब्रह्मचारी कहता है १. मोहयत्यात्मानं मुह्यत्यात्मा वा अनेन इति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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