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ओघनियुक्ति
२०५ के समय आदि का विचार (नियुक्ति १५३-१५४ ), शय्यातर से पूछ कर क्षेत्रान्तर में गमन (१६६-८) आदि का निरूपण किया गया है। ____एक स्थान से दूसरे स्थान में विहार करते समय साधु शययातर से कहते हैंईख बाड़ को लाँघ गया है, तुम्बी में फल लग गये हैं, बैलों में बल आ गया है, गांवों का कीचड़ सूख गया है, रास्तों का जल कम हो गया है, मिट्टी पक गई है, मार्ग पथिकों से क्षुण्ण हो गये हैं-साधुओं के विहार करने का समय आ गया है।
शय्यातर-आप इतनी जल्दी जाने के लिए क्यों उत्सुक हैं ? __आचार्य-श्रमण, पक्षी, भ्रमर, गाय और शरत्कालीन मेघों का निवासस्थान निश्चित नहीं रहता।
__ संध्या के समय आचार्य अपने गमन की सूचना देते हैं कि हमलोग कल विहार करने वाले हैं। गमन करने के पूर्व वे शययातर के परिवार को धर्मोपदेश देते हैं ( १७०-५ )।
साधु शकुन देखकर गमन करते हैं। यदि गमन करते समय मार्ग में कोई मैला, कुचैला, शरीर में तेल लगाये हुए, कुत्ता, कुबड़ा और बौना मिल जाय तो अशुभ समझना चाहिए । इसी प्रकार जल्दी ही प्रसव करनेवाली नारी, वृद्ध कुमारी (जो वृद्धावस्था में भी अविवाहित हो), काष्ठभार धारण करने वाला, काषाय वस्त्र पहने हुए और कूर्चधर (कुंची या पीछी धारण करने वाले ) मिल जाय तो कार्य की सिद्धि नहीं होती। यदि मार्ग में चक्रचर मिल जाय तो भ्रमण, पांडुरंग ( गोशाल के शिष्य ) मिल जाय तो क्षुधामरण, तच्चन्निक ( बौद्ध भिक्षु ) मिल जाय तो रुधिरपात और बोटिक (दिगम्बर सम्प्रदाय का साधु ) मिल जाय तो मरण निश्चित हैं । यदि गमन करते समय जंबूक, चास, मयूर, भारद्वाज और नकुल के दर्शन हों तो शुभ है। इसी प्रकार नंदीतूर, पूर्ण कलश, शंख, पटह का शब्द, शृंगार, छत्र, चामर, ध्वजा और पताका का दर्शन शुभ समझना चाहिए (भाष्य ८२-८५)।
उच्च वोलिंति वई, तुंबीओ जायपुत्तभंडा य । वसभा जायत्थामा गामा पव्वायचिक्खल्ला ॥ अप्पोदगा य मग्गा वसुहा वि पक्कमहिआ जाया। अण्णकता पंथा साहूणं विहरिङ कालो ॥ १७०-१॥ समणाणं सउणाणं भमरकुलाणं च गोउलाणं च ।
अनियाओ वसहीओ सारइयाणं च मेहाणं ॥१७२ ॥ ३. यह गाथा प्रक्षिप्त है।
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