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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ओंकार का जप करने से ब्राह्मण नहीं होता, अरण्यवास से मुनि नहीं होता और कुशचीवर धारण करने से तपस्वी नहीं कहलाता । समता से श्रमण, ब्रह्मचर्य से ब्राह्मण, ज्ञान से मुनि और तप से तपस्वी होता है। कर्म से ब्राह्मण होता है, कर्म से क्षत्रिय होता है, कर्म से वैश्य होता है और अपने कर्म से ही मनुष्य शूद्र होता है। __ जयघोष मुनि का उपदेश श्रवण कर विजयघोष ब्राह्मण ने उनके समीप दीक्षा ग्रहण की (१-४५)। सामाचारी: आवश्यकी, नैवेधिकी, आपृच्छना, प्रतिपृच्छना, छन्दना, इच्छाकार, मिथ्याकार, तथेतिकार, अभ्युत्थान और उपसम्पदा-ये दस साधु-सामाचारी कही गई हैं (१-४)। खलुंकीय : जैसे गाड़ी में योग्य बैल के जोड़ने से कांतार ( भयानक वन ) को सरलता से पार किया जा सकता है, वैसे ही संयम में संलग्न शिष्य संसाररूपी अटवी को पार कर लेते हैं (२)। जो मरियल बैलों ( खलुंक) को गाड़ी में जोतता है वह उन्हें मारते-मारते थक जाता है और उसका चाबुक टूट जाता है ( ३) । दुष्ट शिष्य मरियल बैलों की भांति हैं जो धर्मरूपी यान में जोड़े जाने पर उसे तोड़-फोड़ डालते हैं (८)। गर्गाचार्य अड़ियल टटू की भाँति बर्ताव करने वाले अपने शिष्यों को छोड़कर एकान्त में तप करने चले गये (१६)। मोक्षमार्गीय : ___ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप को जिन भगवान् ने मोक्ष का मार्ग प्रतिपादन किया है (२)। ज्ञान के पाँच भेद हैं-मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान और केवलज्ञान (४) । धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और जीव इन छः द्रव्यों के समूह को लोक कहते हैं (७)। जीव, अजीव, बन्ध, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा और मोक्ष-ये नौ तत्त्व हैं (१४)। इन तत्त्वों का श्रद्धान करना सम्यक्त्व है (१५)। आगे सम्यक्त्व के दस भेद (१६), सम्यक्त्व के आठ अङ्ग (३१), चारित्र के पाँच भेद (३२-३३) व तप के दो प्रकार बताये हैं (३४)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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