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उत्तराव्ययन
• राजा (हँसकर )-क्या आप जैसे ऋद्धिवान् पुरुष का मैं नाथ नहीं हूँ? यदि आपका कोई नाथ नहीं है तो आज से मैं आपका नाथ होता हूँ। मित्र तथा स्वजनों से वेष्टित होकर आप यथेच्छ भोगों का उपभोग करें।
मुनि-हे मगधाधिप! तू स्वयं अनाथ है, फिर दूसरों का नाथ कैसे हो सकता है ?
राजा-हाथी, घोड़े, नौकर-चाकर, नगर और अंतःपुर का मैं स्वामी हूँ. मेरा ऐश्वर्य अनुपम है। फिर मैं अनाथ कैसे हो सकता हूँ ? भंते ! आप मिथ्या तो नहीं कह रहे हैं ?
मुनि-हे पार्थिव ! तू अनाथ या सनाथ के रहस्य को नहीं समझ सका है, इसीलिए इस तरह की बातें कर रहा है। ___ इसके पश्चात् मुनि ने अपने जीवन का आद्योपांत वृत्तान्त राजा से कहा और उसे निर्ग्रन्थ धर्म का उपदेश दिया। मुनि का उपदेश सुनकर राजा श्रेणिक अपने परिवारसहित निर्ग्रन्थ धर्म का उपासक बन गया (१-६०)।' समुद्रपालीय :
चम्पा नगरी में पालित नाम का एक व्यापारी रहता था। वह महावीर का शिष्य था। एक बार पालित जहाज द्वारा व्यापार करता हुआ पिहुंड' नामक नगर में आया। वहाँ पर किसी वणिक ने अपनी पुत्री के साथ उसका विवाह 'कर दिया । जहाज द्वारा घर लौटते हुए पालित के एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम समुद्रपालित रखा गया। बड़े होने पर समुद्रपालित ने ७२ कलाओं की शिक्षा प्राप्त की। उसका विवाह हो गया और वह आनन्दपूर्वक काल यापन करने लगा।
एक दिन समुद्रपालित अपने प्रासाद के वातायन में बैठा हुआ नगर की शोभा देख रहा था। उस समय उसने वध्यस्थान को ले जाते हुए एक चोर को देखा । चोर को देखकर समुद्रपालित के हृदय में वैराग्य हो आया और माता-पिता की आज्ञापूर्वक उसने अनगार व्रत धारण कर लिया (१-२४)। रथनेमीय :
सोरियपुर में वसुदेव नाम का राजा राज्य करता था। उसके रोहिणी और देवकी नाम की दो स्त्रियां थीं। रोहिणी ने राम ( बलभद्र) और देवकी ने केशव १. तुलना कीजिए-सुत्तनिपात के पबज्जा सुत्त के साथ। २. खारवेल के शिलालेखों में पिथुडा अथवा पिथुड का उल्लेख है। ३. सूर्यपुर वटेश्वर ( जिला आगरा) के पास । सूर्यपुर की राजधानी का
नाम कुशार्ता था।
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