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उत्तराध्ययन
निर्जीव शरीर को चिता पर रख और उसे अग्नि से जलाकर भार्या, पुत्र, और सगे-सम्बन्धी सब लोग वापिस घर लौट आते हैं ( २५)।
राजा ब्रह्मदत्त ने विषय-भोगों का त्याग करने का असामर्थ्य बताते हुए उत्तर दिया
धर्म को जानता हुआ भी मैं कामभोगों का त्याग नहीं कर सकता ( ३९) । दलदल में फंसा हुआ हाथी जैसे किनारे को देखते हुए भी उसे नहीं पा सकता, उसी प्रकार कामभोगों में आसक्त हुआ मैं साधुमार्ग को ग्रहण नहीं कर सकता (३०)।
चित्त-आयु व्यतीत हो रही है, रात्रियाँ जल्दी-जल्दी चीत रही हैं. विषयभोग क्षणस्थायी हैं। जैसे फलरहित वृक्ष को पक्षी त्याग कर चले जाते हैं, वैसे ही विषयभोग पुरुष को छोड़ देंगे (३९)। हे राजन् । यदि तू विषयभोगों को छोड़ने में असमर्थ है तो कम से कम तू अच्छे कर्म तो किया कर। अपने धर्म में स्थिर होकर यदि तू प्रजा पर अनुकम्पा धारण करेगा तो अगले जन्म में देव-जाति में जन्म लेगा (३२)।
लेकिन जब चित्त मुनि के उपदेश का ब्रह्मदत्त के मन पर कोई असर न हुआ तो वह वहाँ से चला गया' (३३)। इषुकारीय: ___ इषुकार नगर में किसी पुरोहित ब्राह्मण के दो कुमार थे। उन्हें अपने पूर्व भव का स्मरण हुआ कि उन्होंने पूर्व जन्म में तप और संयम का पालन किया है । भोगों में आसक्त न होते हुए, मोक्ष के अभिलाषी और श्रद्धाशील दोनों अपने पिता के समीप जाकर कहने लगे___ यह जीवन क्षणभंगुर है, व्याधि से युक्त है, अल्प आयुष्यवाला है, इसलिए हम मुनिव्रत धारण करना चाहते हैं। पिता ने अपने पुत्रों को उपदेश देते हुए कहा
वेदवेत्ताओं का कथन है कि पुत्ररहित पुरुष उत्तम गति को प्राप्त नहीं होता है । इसलिए हे पुत्रो ! वेदों का अध्ययन करके, ब्राह्मणों को संतुष्ट करके अपने पुत्रों को घर का भार सौंप और स्त्रियों के साथ भोगों का सेवन करने के बाद मुनिव्रत धारण करना।
१. चित्तसंभूत जातक से तुलना कीजिए; खासकर उत्तराध्ययन की १०,३०
आदि गाथाओं की उक्त जातक की १, २, ३, २२ आदि गाथाओं के साथ ।
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