________________
१५४
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास किन्तु उसे उत्तम धर्म का श्रवण दुर्लभ है, क्योंकि कुतीर्थप्ठेवी लोग अधिक हैं, इसलिए हे गौतम ! क्षण भर भी प्रमाद न कर (१८)। तेरा शरीर जर्जरित हो रहा है, केश पक गए हैं, इन्द्रियों की शक्ति क्षीण हो गई है, इसलिए हे गौतम ! तू क्षण भर भी प्रमाद न कर (२६)। अरति, गंड (फोड़ा-फुन्सी), विशूचिका आदि अनेक रोगों का डर सदा बना रहता है और आशंका बनी रहती है कि कहीं कोई व्याधि खड़ी न हो जाय या.मृत्यु न आ जाय, इसलिए हे गौतम ! तू क्षण भर भी प्रमाद न कर (२७) । तू ने धन और भार्या को छोड़ अनगार व्रत धारण किया है, अब तू वमन किये हुए विषयों को पुनः ग्रहण न कर, इसलिये हे गौतम ! तू क्षण भर भी प्रमाद न कर (२६)। निर्बल भारवाही विषम मार्ग का अनुसरण करने पर पश्चात्ताप का भागी होता है, इसलिए हे गौतम ! तू क्षण भर भी प्रमाद न कर (३३)। बहुश्रुतपूजा
मान, क्रोध, प्रमाद, रोग और आलस्य-इन पाँच स्थानों के कारण ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती ( ३)। निम्नलिखित १४ स्थानों के कारण संयमी अविनीत कहा जाता है-सदा क्रोध करने वाला, प्रकुपित होकर मृदु वचनों से शान्त न होने वाला, मित्र भाव को भङ्ग कर देने वाला, शास्त्राभिमानी, भूल को छिपाने का प्रयत्न करने वाला, मित्रों पर क्रोध करने वाला, पीठ पीछे निन्दा करने वाला, एकान्तरूप से बोलने वाला, द्रोही, अभिमानी, लोभी, असंयमी, आहार आदि का उचित भाग न करने वाला और अप्रीति उत्पन्न करने वाला (६-९)। जो सदा गुरुकुल में रहकर योग और तप करता है, प्रियकारी है और प्रिय बोलता है, वह शिष्य शिक्षा का अधिकारी है ( १४ )। जैसे कम्बोज देश के घोड़ों में आकीर्ण सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, उसी प्रकार बहुश्रुत ज्ञानी सत्र में उत्तम समझा जाता है (१६)। जैसे अनेक हथिनियों से वेष्टित साठ वर्ष का हाथी बलवान् और अजेय होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत ज्ञानी भी अजेय होता है ( १८)। जैसे मन्दर पर्वतों में महान् है, वैसे ही बहुश्रुत ज्ञानी पुरुषों में सर्वश्रेष्ठ है (२६)। हरिकेशीय:
चाण्डाल कुलोत्पन्न हरिकेशबल नामक भिक्षु एक बार भिक्षा के लिए भ्रमण करते हुए ब्राह्मणों की यज्ञशाला में पहुँचे । तप से शोषित तथा मलिन वस्त्र और पात्र आदि उपकरणों से युक्त उन्हें आता हुआ देख अशिष्ट लोग हँसने
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org