________________
१५०
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास जीव इस लोक में या परलोक में शरण प्राप्त नहीं कर सकता। जैसे दीपक के. बुझ जाने पर कुछ भी दिखाई नहीं देता, उसी प्रकार अनंत मोह के कारण मनुष्य न्यायमार्ग को देखकर भी नहीं देखता (५)। सुप्तों में जाग्रत् , बुद्धिमान्
और आशुप्रज्ञावाला साधक जीवन का विश्वास न करे । काल रौद्र है, शरीर निर्बल है, इसलिए साधक को सदा भारुड पक्षी की भाँति अप्रमत्त होकर विचरना चाहिए (६)। मन्द-मन्द स्पर्श बहुत आकर्षक होते हैं, इसलिए उनकी ओर अपने मन को न जाने दे । क्रोध को रोके, मान को दूर करे, माया का सेवन न करे और लोभ को त्याग दे (१२)। अकाममरणीय
मरण-समय में जीवों की दो स्थितियाँ होती हैं-अकाम मरण और सकाम मरण (२)। सद्-असद् विवेक से शून्य मूखों का मरण अकाम मरण होता है, यह बार-बार होता है। पण्डितों का मरण सकाम मरण होता है, यह केवल एक ही बार होता है (३)। काम-भोगों में आसक्त होकर जो असत्य कर्म करता है वह सोचता है कि परलोक तो मैंने देखा नहीं, लेकिन कामभोगों का सुख तो प्रत्यक्ष है (५)। बहुत काल से धारण किया चीवर, चर्म, नग्नत्व, जटा, संघाटी, मुंडन आदि चिह्न दुश्शील साधु की रक्षा नहीं करते। क्षुल्लकनिर्ग्रन्थीय : ___ माता, पिता, पुत्रवधू , भ्राता, भार्या, पुत्र आदि कोई भी अपने संचित कर्मों द्वारा पीड़ित मेरी रक्षा नहीं कर सकता (३)। बंध-मोक्ष की बातें करने वाले और मोक्षप्राप्ति के लिए आचरण न करने वाले केवल बातों की शक्ति से अपनी आत्मा को आश्वासन देते हैं (१०)। औरभ्रीय : __ कोई अपने अतिथि के लिये किसी भेड़े को चावल और जौ खिलाकर पुष्ट बनाता है । भोजन करके वह भेड़ा हृष्ट-पुष्ट और विपुल देहधारी बन जाता है। मालूम होता है, वह अतिथि के आने की प्रतीक्षा में हो । जब तक अतिथि नहीं आता तब तक वह प्राण धारण करता है, परन्तु अतिथि के आते ही लोग उसे मार कर खा जाते हैं। जैसे भेड़ा अतिथि के आगमन की प्रतीक्षा करता रहता है, उसी प्रकार अधर्मी जीव नरक गति की प्रतीक्षा करता रहता है (१-७)। जैसे एक काकिणी ( रुपये का अस्सीवाँ भाग) के लिए किसी मनुष्य ने हजारों मुद्राएँ खो दी, अथवा किसी राजा ने अपथ्य आम खाकर अपना सारा राज्य
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org