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________________ उत्तराध्ययन १४९ छिड़काव करे और न पंखे से हवा ही करे (९)। यदि डांस-मच्छर मांस और रक्त का भक्षण करते हों तो न उन्हें मारे, न उड़ाये, न उन्हें किसी प्रकार का कष्ट पहुँचाये और न उनके प्रति मन में किसी तरह का द्वेष रखे, बल्कि उनकी उपेक्षा ही करे (११)। मेरे वस्त्र जीर्ण हो गये हैं इससे मैं कुछ ही दिनों में अचेल ( वस्त्र रहित) हो जाऊँगा, अथवा मेरे इन वस्त्रों को देखकर कोई मुझे नए वस्त्र देगा, इस बात की चिन्ता साधु कभी न करे' (१२)। जिसने यह जान लिया है कि स्त्रियाँ मनुष्यों की आसक्ति का कारण है, उसका साधुत्व सफल हुआ समझना चाहिए (१६)। कठोर, दारुण अथवा दुःखोत्पादक वचन सुन कर भिक्षु मौन धारण करे और ऐसे वचनों को मन में स्थान न दे (२५)। यदि संयमशील और इन्द्रियजयी भिक्षु को कभी कोई मारे तो उसे विचार करना चाहिए कि जीव का कभी नाश नहीं होता (२७)। भिक्षु चिकित्सा कराने की इच्छा न करे, बल्कि समभाव से रहे, इसी से उसका साधुत्व स्थिर रह सकता है (३३)। कर्मक्षय का इच्छुक साधु आर्यधर्म का पालन करता हुआ मृत्युपर्यंत मल को धारण करे ( ३७)। चतुरंगीय : चार वस्तुएँ इस संसार में दुर्लभ हैं-मनुष्यत्व, श्रुति (धर्म का श्रवण ), श्रद्धा व संयम धारण करने की शक्ति ( १)। मनुष्य-शरीर पाकर भी धर्म का श्रवण दुर्लभ है। धर्म को श्रवण कर जीव तप, क्षमा और अहिंसा को प्राप्त करता है (८)। कदाचित् धर्मश्रवण का अवसर भी मिल जाय तो उस पर श्रद्धा होना बहुत कठिन है, क्योंकि न्यायमार्ग का श्रवण करके भी बहुत से जीव भ्रष्ट हो जाते हैं (९)। मनुष्यत्व, धर्म-श्रवण और श्रद्धा प्राप्त होने पर भी संयम पालन की शक्ति प्राप्त होना दुर्लभ है। बहुत से जीव संयम में रुचि रखते हुए भी उसका आचरण नहीं कर सकते (१०)। असंस्कृत : ___टूटा हुआ जीवन-तन्तु फिर से नहीं जुड़ सकता, इसलिए हे गौतम ! तू एक समय का भी प्रमाद मत कर। जरा से ग्रस्त पुरुष का कोई शरण नहीं है, फिर प्रमादी, हिंसक और अयत्नशील जीव किसकी शरण जाएंगे (१)? प्रमादी १. इससे मालूम होता है कि जैन संघ में जिनकल्पी और स्थविरकल्पी दोनों प्रकार के साधु होते थे। देखिए-आचारांग, ६. ३. १८२, जगदीशचन्द्र जैन, जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ० २०, २१२-१३. २. संभवतः मलधारी हेमचन्द्र नाम पड़ने का यही कारण हो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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