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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कूणिक की उँगली के पक जाने से उसमें से बार-बार खून और पीब बहता जिससे वह बहुत रोता था। अपने पुत्र की वेदना को शान्त करने के लिये श्रेणिक उसकी उँगली को मुँह में रख उसका खून और पीब चूस लेता जिससे बालक चुप हो नाता था।
बड़ा होने पर कूणिक ने सोचा कि राजा श्रेणिक के जीते हुए मैं राजा नहीं बन सकता इसलिये क्यों न इसे गिरफ्तार कर मैं अपना राज्याभिषेक करूँ। एक दिन, कूणिक ने काल आदि दस राजकुमारों को बुलाकर उनके समक्ष यह प्रस्ताव रखा, और उनकी अनुमति प्राप्त कर उसने राजा को शृंखला में बाँध बड़े ठाठ से अपना राज्याभिषेक किया।
___ इस प्रकार कूणिक राज्यपद पर आसीन हो गया। एक दिन वह अपनी माँ के पाद-वंदन के लिये गया। माँ को चिन्तित देख उसने कहा-देखो माँ! मैं अब राजा बन गया हूँ, फिर भी तुम प्रसन्न नहीं हो ? माँ ने उत्तर दिया-हे. पुत्र ! तू ने अत्यंत स्नेह करनेवाले अपने पिता को बाँधकर कारागृह में डाल दिया है, फिर भला मैं कैसे सुखी हो सकती हूँ ? तत्पश्चात् रानी ने गर्भ से लेकर उसके जन्मतक की सब बातें उससे कहीं। यह सुनकर कूणिक को बहुत पश्चात्ताप हुआ और वह तुरत ही परशु हाथ में ले उससे राजा के बंधन काटने के लिये कारागृह की ओर चला। श्रेणिक ने दूर से देखा कि कूणिक परशु हाथ में लिये आ रहा है। उसने सोचा कि अब यह दुष्ट मुझे जीता न छोड़ेगा । यह सोच कर उसने तालपुट' विष खाकर अपने प्राणों का अन्त कर दिया।
कुछ दिनों बाद कूणिक ने राजगृह छोड़ दिया और चंपा में आकर रहने लगा। वहाँ कूणिक का छोटा भाई वेहलकुमार रहता था। उसे राजा श्रेणिक
कृणिक का नाम अशोकचन्द्र रखा गया। कूणिक की माता चेल्लणा विदेह की रहनेवाली थी, इसलिये कूणिक विदेहपुत्र भी कहा जाता था। तत्काल प्राणनाशक विष । जेणंतरेण ताला संपुडिजंति तेणंतरेण मारयतीति तालपुडं (दशवैकालिकचूर्णि, ८, २९२ )। स्थानांग सूत्र (पृ. ३५५ अ) में छः प्रकार का विषपरिणाम बताया है-दष्ट, भुक्त,
निपतित, मांसानुसारी, शोणितानुसारी, सहस्रानुपाती। २. इस संबंध में दूसरी परंपरा के लिए देखिए-आवश्यकचूर्णि, २,,
पृ० १७१.
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