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________________ १३० जैन साहित्य का बृहद् इतिहास प्रतिपादन किया। निरयावलिया सूत्र में दस अध्ययन हैं जिनमें काल, सुकाल, महाकाल, कण्ह, सुकण्ह, महाकण्ह, वीरकण्ह, रामकण्ह, पिउसेणकण्ह और महासेणकण्ह' का वर्णन है । चम्पा नगरी में श्रेणिक राजा राज्य करता था। उसकी रानी चेलना से कूणिक का जन्म हुआ । श्रेणिक की दूसरी रानी काली थी। उससे काल नामक राजकुमार का जन्म हुआ। एक बार की बात है, काल ने कुणिक पर चढ़ाई कर दी और दोनों भाइयों में रथमुशल संग्राम होने लगा। उस समय महावीर अपने श्रमणों के साथ चम्पा नगरी में विहार कर रहे थे। काली ने महावीर के समीप जाकर प्रश्न किया कि भगवन् ! काल की जय होगी या पराजय ? महावीर ने उत्तर दिया-काल कूणिक के साथ रथमुशल संग्राम करता हुआ वैशाली के राजा चेटक द्वारा मृत्यु को प्राप्त होगा और अब तुम उसे न देख सकोगी । राजगृह नगर में श्रेणिक राजा राज्य करता था। उसकी नंदा रानी से अभयकुमार का जन्म हुआ था। एक बार की बात है, श्रेणिक की रानी चेलणा को अपने पति के उदर के मांस को तलकर सुरा आदि के साथ भक्षण करने का दोहद उत्पन्न हुआ और दोहद पूर्ण न होने के कारण वह रुग्ण और उदास रहने लगी। रानी की अंगपरिचारिकाओं ने यह समाचार राजा को सुनाया । राजा ने १. अन्तगडदसाओ ( ७, पृ० ४३ ) में काली, सुकाली, महाकाली, कृष्णा, सुकृष्णा, महाकृष्णा, वीरकृष्णा, रामकृष्णा, पिउसेणकृष्णा, महासेण कृष्णा-ये श्रेणिक की पत्नियों के नाम गिनाये हैं। २. जैन सूत्रों में महाशिलाकंटक और रथमुशल नामक दो महासंग्रामों का उल्लेख मिलता है। इन युद्धों में लाखों आदमी मारे गये थे। देखिए भगवती, ७. ९. ५७६-८; आवश्यकचूर्णि, २, पृ० १७४. ३. अभयकुमार राजा श्रेणिक का एक कुशल मन्त्री था। उसकी बुद्धिमत्ता की अनेक कथाएँ आवश्यकचूर्णि आदि जैन ग्रन्थों में दी हुई हैं। आज भी काठियावाड़ में अभयकुमार के नाम से अनेक कहानियाँ प्रसिद्ध हैं। शिशु के गर्भ में आने के दो-तीन महीने पश्चात् गर्भवती स्त्रियों को अनेक प्रकार की इच्छाएँ होती हैं जिसे दोहद ( दो हृदय) कहा जाता है। देखिए-सुश्रुतसंहिता, शारीरस्थान, अध्याय ३; महावग्ग, १०. २. ५, पृ० ३४३; पेन्जर, कथासरित्सागर, एपेन्डिक्स ३, पृ० २२१-८; जगदीशचन्द्र जैन, जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ० २३९-४०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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