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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास के बाहर आया। उसने अठारह श्रेणी प्रश्रेणी' को बुलाकर नगरी में आठ दिन के उत्सव की घोषणा की और सब जगह कहला दिया कि इन दिनों में व्यापारियों आदि से किसी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जायगा, राजपुरुष किसी के घर में जबर्दस्ती प्रवेश न कर सकेंगे, किसी को अनुचित दण्ड नहीं दिया जायेगा और लोगों का ऋण माफ कर दिया जायेगा (४३)।
उत्सव समाप्त होने के बाद चक्ररत्न ने विनीता से गंगा के दक्षिण तट पर पूर्व दिशा में स्थित मागध तीर्थ की ओर प्रयाण किया। यह देखकर भरत चक्रवर्ती चातुरंगिणी सेना से सजित हो, हस्तिरत्न पर सवार होकर गंगा के दक्षिण तट के प्रदेशों को जीतता हुआ, चक्ररत्न के पीछे-पीछे चलकर मागध तीर्थ में आया और यहाँ अपना पड़ाव डाल दिया। हस्तिरत्न से उतर कर भरत ने प्रोषधशाला में प्रवेश किया और वहाँ दर्भ के संथारे पर बैठ मागधतीर्थकुमार नामक देव की आराधना करने लगा। फिर भरत ने बाहर की उपस्थानशाला में आकर कौटुम्बिक पुरुष को अश्वरथ तैयार करने का आदेश दिया (४४)। - चार घंटे वाले अश्वरथ पर सवार होकर अपने दलबल सहित भरत चक्रवर्ती ने चक्ररत्न का अनुगमन करते हुए लवणसमुद्र में प्रवेश किया। वहाँ पहुँचकर उसने मगधतीर्थाधिपति देव के भवन में एक बाग मारा जिससे देव अपने सिंहासन से खलबला कर उठा । बाण पर लिखे हुए भरत चक्रवर्ती के नाम को पढ़कर देव को पता चला कि भारतवर्ष में भरत नामक चक्रवर्ती का जन्म हुआ है । उसने तुरंत ही भरत के पास पहुँचकर उसे बधाई दी और निवेदन किया-देवानुप्रिय का मैं आज्ञाकारी सेवक हूँ, मेरे योग्य सेवा का आदेश दें। उसके बाद देव का आदर-सत्कार स्वीकार करके भरत चक्रवर्ती ने अपने रथ को भारतवर्ष की ओर लौटा दिया और विजयस्कन्धावार निवेश में पहुँच मगधतीर्थाधिपति देव के सन्मान में आठ दिन के उत्सव की घोषणा की। उत्सव समाप्त होने पर चक्रात्न ने वरदाम तीर्थ की ओर प्रस्थान किया (४५)।
१. कुंभार, पट्टइल्ल ( पटेल), सुवर्णकार, सूपकार ( रसोइया), गान्धर्व,
काश्यप (नाई), मालाकार (माली), कच्छकर (काछी ?), तंबोली; चमार, यन्त्रपीडक (कोल्हू आदि चलाने वाला), गंछिअ (गांछी), छिपाय (ईपी), कंसकार ( कसेरा), सीवग ( सीनेवाला), गुभार (ग्वाला), भिल्ल, धीवर ।
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