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________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति भाग में गणधर्म और चारित्रधर्म का नाश हो जायेगा ( ३५) । दुष्षमा-दुष्पमा नामक छठे काल में भयंकर वायु बहेगी, दिशाएँ धूम्र और धूलि से भर जायेंगी, चन्द्रमा में शीतलता और सूर्य में उष्णता शेष न रहेगी, मेघों से अग्नि और पत्थरों की वर्षा होगी जिससे मनुष्य, पशु, पक्षी और वनस्पति आदि सब नष्ट हो जायेंगे, केवल एक वैताढ्य पर्वत बाकी बचेगा । इस काल के मनुष्य दीन, हीन तथा कूट, कपट, कलह, वध और वैर में संलग्न रहा करेंगे, वे चेष्टाविहीन और निस्तेज हो जायेंगे। अधिक से अधिक २० वर्ष की उनकी आयु होगी, घरों के अभाव में वे बिलों में रहा करेंगे तथा मांस, मत्स्य और मृत शरीर आदि भक्षण कर काल यापन करेंगे (३६)। आगे उत्सर्पिणी के छः कालों का वर्णन है ( ३७-४०)। तीसरा वक्षस्कार : विनीता राजधानी में भरत चक्रवर्ती राज्य करता था। उसकी आयुधशाला में चक्ररत्न उत्पन्न हुआ। आयुधशाला के अध्यक्ष से चक्ररत्न की उत्पत्ति सुनकर भरत चक्रवर्ती अत्यन्त प्रसन्न हुआ। वह तुरत अपने सिंहासन से उठा, एकशाटिक उत्तरासंग धारण कर, हाथ जोड़, चक्ररत्न की ओर सात-आठ पग चला और बाँयें घुटने को मोड़ तथा दाहिने को भूमि पर लगा चक्ररत्न को प्रणाम किया। तत्पश्चात् उसने अपने कौटुम्बिक पुरुष को बुलाकर विनीता नगरी को साफ और स्वच्छ करने का आदेश दिया। भरत ने स्नानघर में प्रवेश कर सुगन्धित जल से स्नान किया और वस्त्राभूषणों से अलंकृत हो बाहर निकला। फिर अनेक गणनायक, दण्डनायक, दूत, सन्धिपाल आदि से वेष्टित हो बाजे-गाजे के साथ आयुधशाला की ओर चला। उसके पीछे-पीछे देश-विदेश की अनेक दासियाँ चंदन-कलश, भृङ्गार, दर्पण, वातकरक ( जलशून्य घड़े), रत्न-करण्डक, वस्त्र, आभरण, सिंहासन, छत्र, चमर, ताड़ के पंखे, धूपदान आदि लेकर चल रही थी। आयुधशाला में पहुँचकर भरत ने चक्ररत्न को प्रणाम किया, रुएँदार पीछी से उसे झाड़ा-पोंछा, जलधारा से स्नान कराया, चन्दन का अनुलेप किया, फिर गन्ध, माल्य आदि से उसकी अर्चना की। उसके बाद चक्ररत्न के सामने चावलों के द्वारा आठ मंगल बनाये, पुष्पों की वर्षा की और धूप जलाई। फिर चक्ररत्न को प्रणाम कर भरत आयुधशाला १. देखिये-लोकप्रकाश २८ वाँ सर्ग और उसके आगे; त्रिलोकसार, ७७९-- ८६७; जगदीशचन्द्र जैन, स्याद्वादमंजरी, परिशिष्ट, पृ० ३५७-३५९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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