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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कर्मवेद पद : इसमें ज्ञानावरणीय आदि कर्मों को बाँधते हुए जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है-इसका विचार है ( ३००)। कर्मवेदबन्ध पद : इस पद में ज्ञानावरणीय आदि कर्मों का वेदन करते हुए जीव कितनी कर्मप्रकृतियों को बाँधता है-इसका विचार है ( ३०१)। कर्मवेदवेद पद : __प्रस्तुत पद में ज्ञानावरणीय आदि कर्मों का वेदन करते हुए जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है-इसका विचार किया गया है ( ३०२)। आहार पद : इसके पहले उद्देशक में सचित्ताहारी आहारार्थी कितने काल तक आहार करता है, किसका आहार करता है, क्या सर्वात्मप्रदेशों द्वारा आहार करता है, कितना भाग आहार करता है, क्या सर्व पुद्गलों का आहार करता है, किस रूप से उसका परिणमन होता है, क्या एकेन्द्रिय शरीर आदि का आहार करता है, लोमाहार और मनोभक्षी क्या है—आदि की व्याख्या है (१-९)। दूसरे उद्देशक में आहार, भव्य, संशी, लेश्या, दृष्टि, संयत, कषाय, ज्ञान, योग, उपयोग, वेद, शरीर और पर्याप्ति-इन तेरह अधिकारों का वर्णन है ( ३०३-३११)। उपयोग पद: ___ उपयोग दो प्रकार के होते हैं-साकार उपयोग और अनाकार उपयोग । साकार उपयोग आठ होते हैं-मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान, केवलज्ञान, मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान व विभंगज्ञान। अनाकार उपयोग चार होते हैं-चक्षुर्दर्शन, अचक्षुर्दर्शन, अवधिदर्शन व केवलदर्शन ( ३१२ ) । पश्यत्ता पद : पश्यत्ता ( पासणया) अर्थात् त्रैकालिक अथवा स्पष्ट दर्शनरूप ज्ञान । पश्यत्ता दो प्रकार की है-साकारपासणया, अनाकारपासणया। साकारपासणया के छः भेद हैं-श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान, केवलज्ञान, श्रुत-अज्ञान और विभंगज्ञान । अनाकारपासणया के तीन भेद हैं-चक्षुर्दर्शन, अवधिदर्शन व केवलदर्शन ( ३१३-४)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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