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________________ प्रज्ञापना कायस्थिति पद : ___ इसमें जीव, गति, इन्द्रिय, योग, वेद, कषाय, लेश्या, सम्यक्त्व, ज्ञान, दर्शन, संयत, उपयोग, आहार, भाषक, परित्त, पर्याप्त, सूक्ष्म, संजी, भवसिदिक, अस्तिकाय और चरम के आश्रय से कायस्थिति का वर्णन है ( २३२-२५३)। सम्यक्त्व पद: इसमें सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यमिथ्यादृष्टि के भेद से जीवों का वर्णन है ( २५४)। अंतक्रिया पद: इसमें जीवों की अन्तक्रिया-कर्मनाश द्वारा मोक्षप्राप्ति का वर्णन है। यहाँ पर चक्रवर्ती के सेनापतिरत्न, गाहापतिरत्न, वर्धकिरत्न, पुरोहितरत्न व स्त्रीरत्न का तथा कांदर्पिक, चरक, परिव्राजक, किल्विषक, आजीविक और आभियोगिक तापसों का उल्लेख है ( २५५-२६६ )। शरीर पद : __इस पद में विधि (शरीर के भेद), संस्थान (शरीर का आकार), शरीर का प्रमाण, शरीर के पुद्गलों का चय, शरीरों का पारस्परिक संबंध, शरीरों का द्रव्य, प्रदेश और द्रव्य-प्रदेशों द्वारा अल्पबहुत्य तथा शरीर की अवगाहना का अल्पबहुत्व-इन अधिकारों का वर्णन है ( २६७-२७८)। क्रिया पद: इसमें कायिकी, अधिकरणिकी, प्राद्वेषिकी, पारितापनिकी व प्राणातिपातिकी-इन पांच क्रियाओं के आश्रय से जीवों का वर्णन किया गया है ( २७९-२८७ )। कर्मप्रकृति पद : ___ इसके पहले उद्देशक में ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीव, आयु, नाम, गोत्र और अंतराय-इन आठ कर्मों के आश्रय से जीवों का वर्णन है (१-१२)। दूसरे उद्देशक में इन कर्मों की उत्तरप्रकृतियों का वर्णन है ( २८८-२९८)। कर्मबंध पद: इसमें ज्ञानावरणीय आदि कर्मों को बाँधते हुए जीव कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधता है-इसका विचार किया गया है ( २९९)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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