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________________ प्रज्ञापना संज्ञी पद : इसमें संज्ञी, असंज्ञी और नोसंशी के आश्रय से जीवों का वर्णन है (३१५) | संयत पद : इसमें संयत, असंयत और संयतासंयत के आश्रय से जीवों का वर्णन है ( ३१६ ) । अवधि पद : इसमें विषय, संस्थान, अभ्यंतरावधि, बाह्यावधि, देशावधि, क्षय-अवधि, प्रतिपाती और अप्रतिपाती — इन द्वारों की व्याख्या वृद्धि - अवधि, है ( ३१७-३१९ ) । परिचारणा पद ( प्रवीचार पद ) : १०१ इस पद में अनन्तरागत आहारक ( उत्पत्ति के समय तुरन्त ही आहार करने वाला ), आहार विषयक आभोग और अनाभोग, आहाररूप से ग्रहण किये हुए पुलों को नहीं जानना, अध्यवसायों का कथन, सम्यक्त्व की प्राप्ति, काय, स्पर्श, रूप, शब्द और मनके संबंध में परिचारणा - विषयोपभोग, उनका अल्पबहुत्व - इन अधिकारों का वर्णन है ( ३२०-३२७) । वेदना पद : इसमें शीत, उष्ण, शीतोष्ण, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव; शारीरिक, मानसिक, शारीरिक-मानसिक; साता, असाता, साता - असाता; दुःखा, सुखा, अदुःख-सुखा; आभ्युपगमिकी, औपक्रमिकी; निदा ( चित्त लगा कर ), अनिदा नामक वेदनाओं के आश्रय से जीवों का वर्णन है ( ३२८ - ९)। समुद्रात पद : इस पद में वेदना, कषाय, मरण, वैक्रिय, तैजस, आहारक और केवलिसमुद्रात की अपेक्षा से जीवों का वर्णन है । यहाँ के वलिसमुद्धात का विस्तार से वर्णन किया गया है ( ३२९-३४९ ) । Jain Education International exe For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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