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प्रज्ञापना
भाषा पद: ___ इस पद' में बतलाया है कि सत्य भाषा दस प्रकार की है-जनपदसत्य, संयतसत्य, स्थापनासत्य, नामसत्य, रूपसत्य, प्रतीत्यसत्य, अपेक्षासत्य, व्यवहारसत्य, योगसत्य व उपमासत्य । मृषा भाषा दस प्रकार की होती हैक्रोधनिश्रित, माननिश्रित, मायानिश्रित, लोभनिश्रित, प्रेमनिश्रित, द्वेषनिश्रित,. हास्यनिश्रित,भयनिश्रित, आख्यायिकानिश्रित व उपघातनिश्रित । सत्यमृषा भाषा दस प्रकार की है-उत्पन्नमिश्रित, विगतमिश्रित, उत्पन्नविगतमिश्रित, जीवमिश्रित, अजीवमिश्रित, जीवाजीवमिश्रित, अनन्तमिश्रित, प्रत्येकमिश्रित, अद्धामिश्रित व अद्धाद्धमिश्रित । असत्यामृषा भाषा बारह प्रकार की है-आमंत्रणी, आज्ञापनी, याचनी, पृच्छनी, प्रज्ञापनी, प्रत्याख्यानी, इच्छालोमा ( इच्छानुकूल), अनभिगृहीता, अभिगृहीता, संशयकरणी, व्याकृता व अव्याकृता । वचन सोलह प्रकार के होते हैं-एकवचन, द्विवचन, बहुवचन, स्त्रीवचन, पुरुषवचन, नपुंसकवचन, अध्यात्मवचन, उपनीतवचन, अपनीतवचन, उपनीतापनीतवचन, अपनीतोपनीतवचन, अतीतवचन, प्रत्युत्पन्नवचन, अनागतवचन, प्रत्यक्षवचन व परोक्षवचन (१६१-१७५)। शरीर पद :
इसमें औदारिक, वैक्रियक, आहारक, तैजस और कार्मण शरीरों की अपेक्षा से जीवों का वर्णन है ( १७६-१८०)। परिणाम पद :
जीवपरिणाम दस प्रकार का है-गतिपरिणाम, इन्द्रियपरिणाम, कषायपरिणाम, लेश्यापरिणाम, योगपरिणाम, उपयोगपरिणाम, ज्ञानपरिणाम, दर्शनपरिणाम, चारित्रपरिणाम, और वेदपरिणाम (१-३)। अजीवपरिणाम दस प्रकार का होता है-बंधनपरिणाम, गतिपरिणाम, संस्थानपरिणाम, भेदपरिणाम, वर्णपरिणाम, गंधपरिणाम, रसपरिणाम, स्पर्शपरिणाम, अगुरुलघुपरिणाम ब शब्दपरिणाम ( १८१-१८५)। कषाय पद:
कषाय पद चार प्रकार के होते हैं-क्रोध, मान, माया और लोभ । क्रोध की उत्पत्ति चार प्रकार से होती है-क्षेत्र, वस्तु, शरीर व उपधि । क्रोध चार
इस पद का विवेचन उपाध्याय यशोविजय जी ने किया है जिसका गुजराती भावार्थ पण्डित भगवानदास हर्षचन्द्र ने प्रज्ञापनासूत्र, द्वितीय खण्ड, पृ० ८१८-३० में दिया है।
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