SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९६ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास विशेष अथवा पर्याय पद : इसमें जीवपर्याय का वर्णन करते हुए अजीवपर्याय में अरूपी अजीव और रूपी अजीव का वर्णन किया है तथा अरूपी अजीव में धर्मास्तिकाय, धर्मास्तिकायदेश, धर्मास्तिकायप्रदेश, अधर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकायदेश, अधर्मास्तिकाय - प्रदेश, आकाशास्तिकाय, आकाशास्तिकायदेश आकाशास्तिकायप्रदेश, अद्धासमय तथा रूपी अजीव में स्कंध, स्कंधदेश, स्कंधप्रदेश और परमाणुपुद्गल का वर्णन किया है ( १०३ - १२१ ) । व्युत्क्रान्ति पद : बारह मुहूर्त और चौबीस मुहूर्त का उपपात और उद्वर्तन ( मरण ) संबंधी विरहकाल क्या है, यहाँ जीव सान्तर उत्पन्न होता है अथवा निरन्तर, एक समय में कितने जीव उत्पन्न होते हैं और कितने मरते हैं, कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं, मर कर कहाँ जाते हैं, परभव की आयु कब बँधती है, आयुबन्धसम्बन्धी आठ आकर्ष कौन से हैं— इन आठ द्वारों से जीव का वर्णन किया गया है ( १२२ – १४५ ) । उच्छास पद : इस पद में नैरयिक आदि के उच्छ्वास ग्रहण करने और छोड़ने के काल का वर्णन है ( १४६ ) । संज्ञी पद : इसमें आहार, भय, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, माया, लोभ और ओघ संज्ञाओं के आश्रय से जीवों का वर्णन है ( १४७ - १४९ ) । योनि पढ़ : इस पद में शीत, उष्ण, शीतोष्ण, सचित्त, अचित्त, मिश्र, संवृत, विवृत, संवृत-विवृत, कूर्मोन्नत, शंखावर्त और वंशीपत्र योनियों के आश्रय से जीवों का वर्णन किया है ( १५० - १५३ ) । चरमाचरम पद : इस पद में चरम, अचरम आदि पदों के आश्रय से रत्नप्रभा आदि पृथिवियों, स्वर्ग, परमाणुपुद्गल, जीव आदि का वर्णन है ( १५४ - १६० ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy