________________
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ( बावोसं परोसहा समजेणं भगवया महावोरेणं कासवेणं पवेइया) इत्यादि । एवं मध्य-अवसानयोः अपि यथासंभवं द्रष्टव्यम् । गमा अस्य विद्यन्ते इति गमिकम्” ( नंदिवृत्ति, पृ० २०३, सू० ४४ )।
गम का अर्थ है प्रारंभ में, मध्य में एवं अन्त में किंचित् परिवर्तन के साथ पुनः-पुनः उसी सूत्र का उच्चारण । जिस श्रुत में 'गम' हो अर्थात् इस प्रकार के सदृश-समान पाठ हों वह गमि कश्रु त है । विशेषावश्यकभाष्य में 'गम' शब्द के दो अर्थ किये हैं :
भंग-गणियाई गमियं जं सरिसगमं च कारणवसेण ।
गाहाइ अगमियं खलु कालियसुयं दिठिवाए वा ॥५४९।। इस गाथा की वृत्ति में बताया गया है कि विविध प्रकार के भंगों--विकल्पों का नाम 'गम' है । अथवा गणित-विशेष प्रकार की गणित की चर्चा का नाम 'गम' है । इस प्रकार के 'गम' जिस सूत्र में हों वह गमिकश्रुत कहलाता है। अथवा सदृश पाठों को 'गम' कहते हैं । जिस सूत्र में कारणवशात् सदश पाठ आते हों वह गमिक कहलाता है ।' समवायांग की वृत्ति में अर्थपरिच्छेदों को 'गम' कहा गया है । नन्दिसूत्र की वृत्ति में भी 'गम' का अर्थ अर्थपरिच्छेद ही बताया है। श्रु त अर्थात् सूत्र के प्रत्येक वाक्य में से मेधावी शिष्य जो विशिष्ट अर्थ प्राप्त करते हैं उसे अर्थपरिच्छेद कहते हैं। इस प्रकार जिस श्रत में 'गम' आते हों उसका नाम अगमिकथ त है।
उदाहरण के तौर पर वर्तमान आचारांग आदि एकादशांगरूप कालिक सूत्र अगमिकश्रु तान्तर्गत हैं जबकि बारहवां अंग दृष्टिवाद ( लुप्त ) गमिकश्रु त है ।
सारा श्रुत एक समान है, समानविषयों की चर्चा वाला है एवं उसके प्रणेता आत्मार्थी त्यागी मुनि हैं। ऐसा होते हुए भी अमुक सूत्र अंगरूप हैं एवं अमुक अंगबाह्य, ऐसा क्यों ? 'अंग' शब्द का अर्थ है मुख्य एवं 'अंगबाह्य' का अर्थ है गौण । जिस प्रकार वेदरूप पुरुष के छन्द, ज्योतिष आदि छ: अंगों की कल्पना अति प्राचीन है उसी प्रकार श्रुत अर्थात् गणिपिटकरूप पुरुष के द्वादशांगों की कल्पना भी प्राचीन है। पुरुष के बारह अंग कौन-कौन-से हैं, इसका निर्देश करते हुए कहा गया है :१. गमाः सदृशपाठाः ते च कारणवशेन यत्र बहवो भवन्ति तद् गमिकम् । २. जो दिवस एवं रात्रि के प्रथम तथा अन्तिम प्रहररूप काल में पढ़े जाते हैं वे
कालिक कहलाते हैं। ३. तच्च प्रायः आचारादि कालिकश्रु तम्, असदृशपाठात्मकत्वात् ।
-मलयगिरिकृत नंदिवृत्ति.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org