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पूज्यपादकृत सर्वार्थसिद्धि ग्रन्थ में इस विषय में जो लिखा है वह इस प्रकार है-"तत्र सर्वज्ञेन परमर्षिणा परमाचिन्त्यकेवलज्ञानविभूतिविशेषेण अर्थत आगम उद्दिष्टः । तस्य साक्षात् शिष्यैः बुद्धयतिशद्धियुक्तै; गणधरैः श्रुतकेवलिभिरनुस्मृतग्रन्थरचनम्-अङ्गपूर्वलक्षणम् ।"-सर्वार्थसिद्धि १.२० । ___ स्पष्ट है कि पूज्यपाद के समय तक ग्रन्थरचना के विषय में श्वेताम्बरदिगम्बर में कोई मतभेद नहीं है । यह भी स्पष्ट है कि केवल एक ही गणधर सूत्र रचना नहीं करते किन्तु अनेक गणधर सूत्ररचना करते हैं। पूज्यपाद को तो यहीं परम्परा मान्य है जो श्वेताम्बरों के सम्मत अनुयोग में दी गई है यह स्पष्ट है। इसी परम्परा का समर्थन आचार्य अकलंक और विद्यानन्द ने भी किया हैबुद्धयतिशद्धियुक्तैर्गणधरैः अनुस्मृतग्रन्थरचनम्-आचारादिद्वादशविधमङ्गप्रविष्टमुच्यते ।"-राजवार्तिक १. २०. १२, पृ० ७२ । "तस्याप्यर्थतः सर्वज्ञवोतरागप्रणेतृकत्वसिद्धः, 'अहंभाषितार्थं गणधरदेवैः प्रथितम्' इति वचनात् ।" तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक पृ० ६; "द्रव्यश्रुतं हि द्वादशाङ्गं वचनात्मकमाप्तोपदेशरूपमेव, तदर्थज्ञानं तु भावश्रुतम् तदुभयमपि गणधरदेवानां भगवदर्हत्सर्वज्ञवचनातिशयप्रसादात् स्वमतिश्रु तिज्ञानावरणवीर्यान्तरायक्षयोपशमातिशयाच्च उत्पद्यमानं कथमाप्तायत्तं न भवेत् ?' वही पृ० १ ।
इस तरह आचार्य पूज्यपाद, आचार्य अकलंक और आचार्य विद्यानन्द ये सभी दिगम्बर आचार्य स्पष्ट रूप से मानते हैं कि सभी गणधर सूत्र-रचना करते हैं।
ऐसी परिस्थिति में इन आचार्यों के मत के अनुसार यही फलित होता है कि गौतम गणवर ने और अन्य सुधर्मा आदि ने भी ग्रन्थरचना की थी। केवल गौतम ने ही ग्रन्थरचना की हो और सुधर्मा आदि ने न की हो यह फलित नहीं होता। यह परिस्थिति विद्यानन्द तक तो मान्य थी ऐसा प्रतीत होता है । ऐसा ही मत श्वेताम्बरों का भी है।
पं० कैलाशचन्द्र ने यह लिखा है कि "हमने इस बात को खोजना चाहा कि जैसे दिगम्बर परम्परा के अनुसार प्रधान गणधर गौतम ने महावीर की देशना को अंगों में गूथा वैसे श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार महावीर की वाणी को सुनकर उसे अंगों में किसने निबद्ध किया ? किन्तु खोजने पर भी हमें किसी खास गणधर का निर्देश इस सम्बन्ध में नहीं मिला ।"-पीठिका पृ० ५३० ।
इस विषय में प्रथम यह बता देना जरूरी है कि यहाँ पं० कैलाशचन्द्र जी यह बात 'केवल गौतम ने हो अंगरचना की थी'-इस मन्तव्य को मानकर ही
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