________________
( १६ ) ११ अंग-जो श्वेताम्बरों के सभी सम्प्रदायों को मान्य हैं वे है
१ आयार (आचार), २ सूयगड (सूत्रकृत), ३ ठाण (स्थान), ४ समवाय, ५ वियाहफ्न्नत्ति (व्याख्याप्रज्ञप्ति), ६ नायाधम्मकहाओ (ज्ञातधर्मकथा), ७ उवासगदसाओ (उपासदशाः), ८ अंतगडदसाओ (अन्तकृद्दशाः), ९ अनुत्तरोववाइयदसाओ (अनुत्तरोपपादिकदशाः), १० पण्हावागरणाइं (प्रश्नव्याकरणानि), ११ विवागसुयं (विपाकश्रुतम्) (१२ दृष्टिवाद, जो विछिन्न हुआ है)।
१२ उपांग-जो श्वेताम्बरों के तीनों सम्प्रदायों को मान्य हैं
१ उववाइयं (औपपातिक), २ रायपसेणइज्जं (राजप्रसेनजित्क) अथवा रायपसेणियं (राजप्रश्नीयं), ३ जीवाजीवाभिगम, ४ पण्णवणा (प्रज्ञापना), ५ सूरपण्णत्ति (सूर्यप्रज्ञप्ति), ६ जंबुद्दीवपण्णत्ति (जम्बूदीपप्रज्ञप्ति), ७ चंदपण्णत्ति (चन्द्रप्रज्ञप्ति), ८-१२ निरयावलियासुयक्खंध (निरयावलिकाश्रुतस्कन्धः), ८ निरयावलियाओ (निरयावलिकाः), ९ कप्पवडिसियाओ (कल्पावतंसिकाः), १० पुष्फियाओ (पुष्पिकाः), ११ पुष्फचलाओ (पुष्पचूलाः), १२ वहिदसाओ (वृष्णिदशाः)।
१० प्रकीर्णक-जो केवल श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय को मान्य हैं
१ चउसरण (चतुःशरण), २ आउरपच्चाक्खाण (आतुरप्रत्याख्यान), ३ भत्तपरिन्ना (भक्तपरिज्ञा), ४ संथार (संस्तार), ५ तंडुलवेयालिय (तण्डुलवैचारिक), ६ चंदवेज्झय (चन्द्रवेध्यक), ७ देविदत्थय (देवेन्द्रस्तव), ८ गणिविज्मा (गणिविद्या), ९ महापच्चक्खाण (महाप्रत्याख्यान), १० वीरत्यय (वीरस्तव) ।
६ छेद-१ आयारदसा अथवा दसा (आचारदशा), २ कप्प (कल्प'), ३ ववहार (व्यवहार), ४ निसीह (निशीथ), ५ महानिसीह (महानिशीथ), ६ जीयकप्प (जीतकल्प) । इनमें से अन्तिम दो स्थानकवासी और तेरापन्थी को मान्यनहीं हैं।
२ चूलिकासूत्र-१ नन्दी, २ अणुयोगदारा (अनुयोगद्वाराणि) ।
४ मूलसूत्र-१ उत्तरज्झाया (उत्तराध्या याः), २ दसवेयालिय (दश कालिक), ३ आवस्सय (आवश्यक), ४ पिण्डनिज्जुत्ति (पिण्डनियुक्ति) । इनमें से अन्तिम स्थानकवासी और तेरापन्थी को मान्य नहीं है। ___ यह जो गणना दी गई है उसमें एक के बदले कभी-कभी दूसरा भी आता है, जैसे पिण्डनियुक्ति के स्थान में ओघनियुक्ति । दस प्रकीर्णकों में भी नामभेद देखा
१. दशाश्रुत में से पृथक् किया गया एक दूसरा कल्पसूत्र भी है। उसके नामसाम्म से भ्रम उत्पन्न न हो इस लिए इसका दूसरा नाम बृहत्कल्प रखा गया है।
Jain Education International
ternational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org