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दृष्टि से विचार किया जाय तो अरक का समय अर और मल्ली के बीच ठहरता है । इस आयु के भेद को न माना जाय तो इतना कहा ही जा सकता है कि अर या अरक नामक कोई महान् व्यक्ति प्राचीन पुराणकाल में हुआ था जिन्हें बौद्ध और जैन दोनों ने तीर्थंकर का पद दिया है । दूसरी बात यह भी ध्यान देने योग्य है कि इस अरक से भी पहले बुद्ध के मत से अरनेमि नामक एक तीर्थंकर हुए हैं । बुद्ध के बताये गये अरनेमि और जैन तीर्थंकर अर का भी कुछ सम्बन्ध हो सकता है । नामसाम्य आंशिक रूप से है ही और दोनों की पौराणिकता भी मान्य है ।
बौद्ध थेरगाथा में एक अजित थेर के नाम से गाथा है
मरणे मे भयं नत्थि निकन्ति नत्थि जीविते । सन्देहं निक्खिपिस्सामि सम्पजानो पटिस्सतो ॥
उसकी अट्ठकथा में कहा गया है कि ये अजित ९१ कल्प के पहले प्रत्येकबुद्ध हो गये हैं । जैनों के दूसरे तीर्थंकर अजित और ये प्रत्येकबुद्ध अजित योग्यता और नाम के अलावा पौराणिकता में भी साम्य रखते हैं । महाभारत में अजित और शिव का ऐक्य वर्णित है । बौद्धों के, महाभारत के और जैनों के अजित एक हैं या भिन्न, यह कहना कठिन है किन्तु इतना तो कहा ही जा सकता है कि अजित नामक व्यक्ति ने प्राचीनकाल में प्रतिष्ठा पाई थी ।
- थेरगाथा १.२०
बौद्धपिक में निग्गन्थ नातपुत्त का कई बार नाम आता है और उनके उपदेश की कई बातें ऐसी हैं जिससे निग्गन्थ नातपुत्त की ज्ञातपुत्र भगवान् महावीर
से अभिन्नता सिद्ध होती है । इस विषय में सर्वप्रथम ध्यान आकर्षित किया था और अब तो यह बात
डॉ० जेकोबी ने विद्वानों का सर्वमान्य हो गई है । डॉ० अस्तित्व को भी साबित किया
कोबी ने बौद्धपिटक से ही भगवान् पार्श्वनाथ के है । भगवान् महावीर के उपदेशों में बौद्धपिटकों में बारबार उल्लेख आता है कि
उन्होंने चतुर्याम का उपदेश दिया है । डॉ० जेकोबी ने इस पर
द्वारा दिया गया प्रचलित था ।
है कि बुद्ध के समय में चतुर्याम का पार्श्वनाथ स्वयं जैनधर्म की परम्परा में माना गया है, उस चतुर्याम के स्थान में पाँच महाव्रत का उपदेश दिया था। इस बात को बुद्ध जानते न थे । अतएव जो पार्श्व का उपदेश था उसे महावीर का उपदेश कहा
परम्परा को मान्य पार्श्व और
गया । बौद्धपिटक के इस गलत उल्लेख से जैन उनके उपदेश का अस्तित्व सिद्ध हो जाता है । पार्श्वनाथ के अस्तित्व के विषय में प्रबल प्रमाण पाते हैं ।
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से अनुमान लगाया उपदेश जैसा कि भगवान् महावीर ने
इस प्रकार बौद्धपिटक से हम
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