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१. परिशिष्ट
दृष्टिवाद बारहवां अंग दृष्टिवाद अनुपलब्ध है अतः इसका परिचय कैसे दिया जाय ? नन्दिसूत्र में इसका साधारण परिचय दिया गया है, जो इस प्रकार है :
दृष्टिवाद की वाचनाएँ परिमित अर्थात् अनेक हैं, अनुयोगद्वार संख्येय हैं, वेढ (छंदविशेष) संख्येय हैं, श्लोक संख्येय हैं, प्रत्तिपत्तियाँ (समझाने के साधन) संख्येय हैं, नियुक्तियाँ संख्येय हैं, संग्रहणियाँ संख्येय है, अङ्ग की अपेक्षा से यह बारहवां अङ्ग है, इसमें एक श्रुतस्कन्ध है, संख्येय सहस्र पद हैं, अक्षर संख्येय है, गम एवं पर्यव अनन्त हैं। इसमें त्रस और स्थावर जीवों, धर्मास्तिकाय आदि शाश्वत पदार्थों एवं क्रियाजन्य पदार्थों का परिचय है। इस प्रकार जिन-प्रणीत समस्त भावों का निरूपण इस बारहवें अंग में उपलब्ध है। जो मुमुक्षु इस अंग में बताई हुई पद्धति के अनुसार आचरण करता है वह ज्ञान के अभेद की अपेक्षा से दृष्टिवादरूप हो जाता है-उसका ज्ञाता व विज्ञाता हो जाता है।
दृष्टिवाद के पूर्व आदि भवों के विषय में पहले प्रकाश डाला जा चुका है (पृ० ४४, ४८-५१)। यह बारहवां अंग भद्रबाहु के समय से ही नष्टप्रायः है। अतः इसके विषय में स्पष्ट रूप से कुछ भी नहीं जाना जा सकता। मलधारी हेमचन्द्र ने अपनी विशेषावश्यकभाष्य की वृत्ति में कुछ भाष्य-गाथाओं को 'पूर्वगत" बताया है । इसके अतिरिक्त एतद्विषयक विशेष परिचय उपलब्ध नहीं है।
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