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________________ २. परिशिष्ट अचेलक परम्परा के प्राचीन ग्रन्थों में सचेलकसम्मत अंगादिगत अवतरणों का उल्लेख ___जिस प्रकार वर्तमान अंगसूत्रादि आगम सचेलक परम्परा को मान्य हैं उसी प्रकार अचेलक परम्परा को मान्य रहे हैं, यह स्पष्ट प्रतीत होता है। अचेलक परम्परा के लघुप्रतिक्रमण सूत्र के मूल पाठ में ज्ञातासूत्र के उन्नीस अध्ययन गिनाये हैं। इसी प्रकार सूत्रकृतांग के तेईस एवं आचारप्रकल्प (आचारांग) के अठाईस अध्ययनों के नाम दिये गये हैं। राजवातिक आदि ग्रन्थों में भी अंगविषयक उल्लेख उपलब्ध है किन्तु अमुक सूत्र में इतने अध्ययन है, ऐसा उल्लेख इनमें नहीं मिलता। इस प्रकार का स्पष्ट उल्लेख अचेलक परम्परा के लघुप्रतिक्रमण एवं सचेलक परम्परा के स्थानांग, समवायांग व नन्दीसूत्र में उपलब्ध है । इसी प्रकार का उल्लेख अचेलक परम्परा के प्रसिद्ध ग्रन्थ प्रतिक्रमणग्रन्थत्रयो की आचार्य प्रभाचन्द्रकृत वृत्ति में विस्तारपूर्वक मिलता है, यद्यपि इन नामों व सचेलक परम्परासम्मत नामों में कहीं-कहीं अन्तर है जो नगण्य है। ज्ञातासूत्र के उन्नीस अध्ययनों के नाम लघुप्रतिक्रमण में इस प्रकार गिनाये गये है : उक्कोडणा ग कुम्भ अंडय रोहिणि सिस्स तुब' संघादे । मादंगिम ल्लि चंदिन तावद्देवय तिक' तलाय१२ किण्णे१3 ॥ १॥ सुसुकेय१४ अवरकके१५ नंदीफलं१६ उदगणाही मंडुक्के१८ । एत्ता य पुंडरीगो९ णाहज्झाणाणि उणवीसं ॥२॥ सचेलक परम्परा में एतद्विषयक संग्रहगाथाएं इस प्रकार हैं :उक्खित्ते' णाए संघाडे अंडे कुम्मे सेलए"। तुबे य रोहिणो मल्ली' मागंदी चंदिमा'° इय ।। १॥ दावद्दवे' उदगणाए१२ मंडुक्क'3 तेयली चेव । नंदिफले१५ अवरकंका' आयन्ने सुसु पुंडरीया'९ ॥२॥ ये गाथाएँ सवृत्तिक आवश्यकसूत्र (पृ. ६५३) के प्रतिक्रमणाधिकार में हैं। सूत्रकृतांग के तेईस अध्ययनों के नाम प्रतिक्रमणग्रंथत्रयी की वृत्ति में इस प्रकार है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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