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'विपाकसूत्र
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अर्थात् परिणाम का वर्णन है । सचेलक परम्परा के समवायांग तथा नन्दीसूत्र में भी इसी प्रकार विपाक के विषय का परिचय दिया गया है । इस प्रकार विपाकसूत्र के विषय के सम्बन्ध में दोनों परम्पराओं में कोई वैषम्य नहीं है । नन्दी और समवाय में यह भी बताया गया है कि असत्य और परिग्रहवृत्ति के परिणामों की भी इस सूत्र में चर्चा की गई है । उपलब्ध विपाक में एतद्विषयक कोई कथा नहीं मिलती ।
अध्ययन - नाम :
स्थानांग में कर्मविपाक ( दुःखविपाक ) के दस अध्ययनों के नाम दिये गये हैं मृगापुत्र, गोत्रास, अंड, शकट, ब्राह्मण, नंदिषेण, शौयं, उदुंबर, सहसोद्दाह - आमरक और कुमार लिच्छवी । उपलब्ध विपाक में मिलनेवाले कुछ नाम इन नामों से भिन्न हैं । गोत्रास नाम उज्झितक के अन्य भव का नाम है। अंड नाम अभग्नसेन द्वारा पूर्वभव में किये गये अंडे के व्यापार का सूचक है । ब्राह्मण नाम का सम्बन्ध - बृहस्पतिदत्त पुरोहित से है । नंदिषेण का नाम नंदिवर्धन के स्थान पर प्रयुक्त हुआ है । सहसोद्दाह - आमरक का सम्बन्ध राजा की माता को तप्तशलाका से मारनेवाली देवदत्ता के साथ जुड़ा हुआ मालूम होता है । कुमारलिच्छवी के स्थान पर उपलब्ध नाम अंजू है । अंजू के अपने अन्तिम भव में किसी सेठ के यहाँ पुत्र रूप से अर्थात् कुमाररूप से जन्म ग्रहण करने की घटना का उल्लेख आता है । संभवतः इस घटना को ध्यान में रखकर स्थानांग में कुमारलिच्छवी नाम का प्रयोग किया गया है । लिच्छवी शब्द का सम्बन्ध लिच्छवी नामक वंशविशेष से वृत्तिकार ने 'लेच्छई' का अर्थ 'लिप्स' अर्थात् ' लाभ प्राप्त करने की वृत्तिवाला वणिक्' किया है । यह अथं ठीक नहीं है । यहाँ 'लेच्छई' का अर्थ 'लिच्छवी बंश' ही अभिप्रेत है । स्थानांग के इस नामभेद का कारण वाचनान्तर माना जाय तो कोई असंगति न होगी । स्थानांगकार ने सुखविपाक के दस अध्ययनों के नामों - का उल्लेख नहीं किया है ।
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