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________________ २८० जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कि शस्त्रप्रयोग, विषप्रयोग अथवा अग्निप्रयोग द्वारा श्यामा का खात्मा कर दिया जाय तो हमारी कन्याएँ सुखी हो जायं। यह बात किसी तरह श्यामा को मालूम हो गई। उसने राजा को सूचित किया। राजा ने उन स्त्रियों एवं उनकी माताओं को भोजन के बहाने एक महल में एकत्र कर महल में आग लगा दी। सब स्त्रियाँ जल कर भस्म हो गई। हत्यारा राजा मर कर नरक में गया। वहां को आयु समाप्त कर देवदत्ता नामक स्त्री हुमा । देवदत्ता का विवाह एक राजपुत्र से हुआ। राजपुत्र मातृभक्त था अतः अधिक समय माता की सेवा में ही व्यतीत करता था। प्रातःकाल उठते ही राजपुत्र पुष्पनंदी माता श्रीदेवी को प्रणाम करता था। बाद में उसके शरीर पर अपने हाथों से तेल आदि की मालिश कर उसे नहलाता एवं भोजन कराता था। भोजन करने के बाद उसके अपने कक्ष में सो जाने पर ही पुष्पनन्दी नित्यकर्म से निवृत्त हो भोजन करता था। इससे देवदत्ता के आनन्द में विघ्न पड़ने लगा। वह राजमाता की जीवनलीला समाप्त करने का उपाय सोचने लगी। एक बार राजमाता के मद्य पी कर निश्चित होकर सो जाने पर देवदत्ता ने तप्त लोहशलाका उसकी गुदा में जोर से घुसेड़ दी। राजमाता की मृत्यु हो गई । राजा को देवदत्ता के इस कुकर्म का पता लग गया। उसने उसे पकड़वा कर मृत्युदण्ड का आदेश दिया। अंजू : दसवीं कथा अंजू की है। स्थान का नाम वर्धमानपुर, राजा का नाम विजय, सार्थवाह का नाम धनदेव, सार्थवाह की पत्नी का नाम प्रियंगु एवं सार्थवाहपुत्री का नाम अंजू है। अंजू पूर्वभव में गणिका थी। गणिका का पापमय जीवन समाप्त कर धनदेव की पुत्री हुई थी। अंजू का विवाह राजा विजय के साथ हुआ। पूर्वकृत पापकर्मों के कारण अंजू को योनिशूल रोग हुआ। अनेक उपचार करने पर भी रोग शान्त न हुआ। उपयुक्त कथाओं में उल्लिखित पात्र ऐतिहासिक है या नहीं, यह नहीं कहा जा सकता। सुख विपाक : सुख विपाक नाम द्वितीय श्रुतस्कन्ध में आनेवाली दस कथाओं में पुण्य के परिणाम की चर्चा है । जिस प्रकार दुःख विपाक की कथाओं में किसी असत्यभाषी की तथा महापरिग्रही को कथा नहीं आतो उसो प्रकार सुख विपाक की कथाओं में किसी सत्यभाषी की तथा ऐच्छिक अल्पपरिग्रही की कथा नहीं आती। आचार के इस पक्ष का विपाकसूत्र में प्रतिनिधित्व न होना अवश्य विचारणीय है। विपाक का विषय : इस सूत्र के विषय के सम्बन्ध में अचेलक परम्परा के राजवातिक, धवला, जयधवला और अंगपण्णत्ति में बताया गया है कि इसमें दुःख और सुख के विपाक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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