________________
विपाकसूत्र
२७९
देने के लिए कहता है । चित्र यह बात श्रीदाम को बता देता है । श्रीदाम नंदिवर्धन को पकड़वाकर दुर्दशापूर्वक मरवा देता है । नंदिवर्धन का जीव भी अन्त में महाविदेह में सिद्ध होगा । उंबरदत्त व धन्वन्तरि वैद्य :
सातवीं कथा उंबरदत्त की है । गाँव का नाम पाटलिखंड, राजा का नाम सिद्धार्थ, सार्थवाह का नाम सागरदत्त, उसकी भार्या का नाम गंगदत्ता और उनके पुत्र का नाम उंबरदत्त है । उंबरदत्त पूर्वभव में धन्वन्तरि नामक वैद्य था । धन्वन्तरि अष्टांग आयुर्वेद का ज्ञाता था : बालचिकित्सा, शालाक्य, शल्यचिकित्सा, कायचिकित्सा, विषचिकित्सा, भूतविद्या, रसायन और वाजीकरण । उसके लघुहस्त शुभहस्त और शिवहस्त विशेषण कुशलता के सूचक थे । वह अनेक प्रकार के रोगियों की चिकित्सा करता था । श्रमणों तथा ब्राह्मणों की परिचर्या करता था । औषधि में विविध प्रकार के मांस का उपयोग करने के कारण धन्वन्तरि मर कर नरक में गया । वहाँ से आयु पूर्ण कर सागरदत्त का पुत्र उबरदत्त हुआ । माता के उंबरदत्त नामक यक्ष की मनौती करने के कारण इसका नाम भी उंबरदत्त रखा गया। इसका पिता जहाज टूट जाने के कारण समुद्र में डूब कर मर गया । माता भी मृत्यु को प्राप्त हुई । उंबरदत्त अनाथ हो घर-घर भीख माँगने लगा । उसे अनेक रोगों ने घेर लिया । हाथ-पैर की अंगुलियाँ गिर पडीं। सारे शरीर से रुधिर बहने लगा | उंबरदत्त को ऐसी हालत में देख कर गौतम ने महावीर से प्रश्न किया । महावीर ने उसके पूर्वभव और आगामी भव पर प्रकाश डाला एवं बताया कि अन्त में वह महाविदेह में मुक्त होगा ।
शौरिक मछलीमार :
आठवीं कथा शौरिक नामक मछलीमार की है । शौरिक गले में मछली का काँटा फँस जाने के कारण तीव्र वेदना से कराह रहा था । वह पूर्व जन्म में किसी राजा का रसोइया था जो विविध प्रकार के पशु-पक्षियों का मांस पकाता, मांस के वैविध्य से राजा-रानी को खुश रखता और खुद भी मांसाहार करता था । परिणामतः वह मर कर शौरिक मछलीमार हुआ ।
देवदत्ता :
नवीं कथा देवदत्ता नामक स्त्री की है । यह कथा इस प्रकार है :सिंहसेन नामक राजपुत्र ने एक ही दिन में पांच सौ कन्याओं के साथ विवाह किया । दहेज में खूब सम्पत्ति प्राप्त हुई । इन भार्याओं में से श्यामा नामक स्त्री पर राजकुमार विशेष आसक्त था । शेष ४९९ स्त्रियों की वह तनिक भी परवाह नहीं करता था । यह देख कर उन उपेक्षित स्त्रियों की माताओं ने सोचा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org