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________________ २७६ जेन साहित्य का बृहद् इतिहास अतिशय का परिचय कराया। मृगापुत्र के शरीर में बहुत दुर्गन्ध निकलती थी और वह यहां तक कि स्वयं मृगादेवी को मुंह पर कपड़ा बांधना पड़ा था। जब गौतम उसे देखने गये तो उन्हें भी मुँह पर कपड़ा बांधना पड़ा। मृगापुत्र के वर्णन में एक भयंकर दुःखी मानव का चित्र उपस्थित किया गया है। दुःखविपाक का यह एक रोमाञ्चकारी दृष्टान्त है । गौतम ने भगवान् महावीर से पूछा कि मृगापुत्र को ऐसी वेदना होने का क्या कारण है ? उत्तर में भगवान् ने उसके पूर्वभव की कथा कही । यह कथा इस प्रकार है : भारतवर्ष में शतद्वार नगर के पास विजयवर्धमान नामक एक खेट-बड़ा गाँव था। इस गांव के अधीन पांच सौ छोटे-छोटे गांव थे । इस गांव में एक्काई नामक राठौड़-रटुउड-राष्ट्रकूट (राजा द्वारा नियुक्त शासन-संचालक) था । वह अति अधार्मिक एवं क्रूर था। उसने उन गाँवों पर अनेक प्रकार के कर लगाये थे। वह लोगों की न्याययुक्त बात भी सुनने के लिए तैयार न होता था। वह एक बार बीमार पड़ा। उसे श्वास, कास, ज्वर, दाह, कुक्षिशूल, भगन्दर, हरस, अजीर्ण, दृष्टिशूल, मस्तकशूल, अरुचि, नेत्रवेदना, कर्णवेदना, कंडू, जलोदर व कुष्ट-इस प्रकार सोलह रोग एक साथ हुए । उपचार के लिये वैद्य, वैद्यपुत्र, ज्ञाता, ज्ञातापुत्र, चिकित्सक, चिकित्सकपुत्र आदि विविध उपचारक अपने साधनों व उपकरणों से सज्जित हो उसके पास आये। उन्होंने अनेक उपाय किये किन्तु राठौड़ का एक भी रोग शान्त न हुआ। वह ढाई सौ वर्ष की आयु में मृत्यु प्राप्त कर नरक में गया और वहां का बायुष्य पूर्ण कर मृगापुत्र हुआ। मृगापुत्र के गर्भ में आते ही मुगादेवी अपने पति को अप्रिय होने लगी। मृगादेवी ने गर्भनाश के अनेक उपाय किये । इसके लिए उसने अनेक प्रकार की हानिकारक औषधियां भी लीं किन्तु परिणाम कुछ न निकला । अन्त में मृगापुत्र का जन्म हुआ। जन्म होते ही मृगादेवी ने उसे गांव के बाहर फेंकवा दिया किन्तु पति के समझाने पर पुनः अपने पास रखकर उसका पालन-पोषण किया। गौतम ने भगवान से पूछा कि यह मृगापुत्र मरकर कहां जायेगा ? भगवान ने बताया कि सिंह आदि अनेक भव ग्रहण करने के बाद सुप्रतिष्ठपुर में गोरूप से जन्म लेगा, एवं वहाँ गङ्गा के किनारे मिट्टी में दब कर मरने के बाद पुनः उसी नगर में एक सेठ का पुत्र होगा। बाद में सौधर्म देवलोक में देवरूप से जन्म ग्रहण कर महाविदेह में सिद्धि प्राप्त करेगा। कामध्वजा व उज्झितक : द्वितीय कथा का स्थान वाणिज्यग्राम (वर्तमान बनियागांव जो कि वैशाली के पास है), राजा मित्र एवं रानो श्री है । कथा की मुख्य नायिका कामज्झया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002094
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size13 MB
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