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विपाकसूत्र फलित होता है कि इस उपोद्धात अंश के कर्ता न तो सुधर्मा हैं और न जम्बू । इन दोनों के अतिरिक्त कोई तीसरा ही पुरुष इसका कर्ता है ।
प्रत्येक कथा के प्रारम्भ में सर्वप्रथम कथा कहने के स्थान का नाम, बाद में वहाँ के राजा-रानी का नाम, तत्पश्चात् कथा के मुख्य पात्र के स्थान आदि का परिचय देने का रिवाज पूर्व परम्परा से चला आता है। इस रिवाज के अनुसार प्रस्तुत कथा-योजक प्रारम्भ में इन सारी बातों का परिचय देते है। मृगापुत्र :
दुःखविपाक की प्रथम कथा चंपा नगरी के पूर्णभद्र नामक चैत्य में कही गई है । कथा के मुख्य पात्र का स्थान मियग्गाम-मृगग्राम है । रानी का नाम मृगादेवी व पुत्र का नाम मृगापुत्र है। मृगग्राम चंपा के आस-पास में कहीं हो सकता है । इसके पास चंदनपादप नामक उद्यान होने का उल्लेख है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि यहाँ चन्दन के वृक्ष विशेष होते होंगे।
कथा शुरू होने के पूर्व भगवान् महावीर को देशना का वर्णना आता है । जहाँ महावीर उपदेश देते हैं वहाँ लोगों के झुंड के झुंड जाने लगते हैं। इस समय एक जन्मांध पुरुष अपने साथी के साथ कहीं जा रहा था। वह चारों ओर चहल-पहल से परिचित होकर अपने साथी से पूछता है कि आज यहाँ क्या हो-हल्ला है ? इतने लोग क्यों उमड़ पड़े हैं ? क्या गाँव में इन्द्र, स्कन्द, नाग, मुकुन्द, रुद्र, शिव, कुबेर, यक्ष, भूत, नदी, गुफा, कूप, सरोवर, समुद्र, तालाब, वृक्ष, चैत्य अथवा पर्वत का उत्सव शुरू हुआ है ? साथी से महावीर के आगमन की बात जानकर वह भी देशना सुनने जाता है। महावीर के ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति उस जन्मान्ध पुरुष को देखकर भगवान् से पूछते हैं कि ऐसा कोई अन्य जन्मान्ध पुरुष है ? यदि हैं तो कहाँ है ? भगवान् उत्तर देते हैं कि मृगग्राम में मृगापुत्र नामक एक जन्मान्ध ही नहीं अपितु जन्ममूक व जन्मबधिर राजकुमार है जो केवल मांसपिण्ड है अर्थात् जिसके शरीर में हाथ, पैर, नेत्र, नासिका, कान आदि अवयवों व इन्द्रियों की आकृति तक नहीं है। यह सुनकर द्वादशांगविद् व चतुर्ज्ञानधर इन्द्रभूति कुतूहलवश उसे देखने जाते हैं एवं भूमिगृह में छिपाकर रखे हुए मांसपिण्डसदृश मृगापुत्र को प्रत्यक्ष देखते हैं। यहाँ एक बात विशेष ज्ञातव्य है किसी को यह मालूम न हो कि ऐसा लड़का रानी मृगादेवी का है, उसने उसे भूमिगृह में छिपा रखा था। रानी पूर्ण मातृवात्सल्य से उसका पालन-पोषण करती थी। जब गौतम इन्द्रभूति उस लड़के को देखने गये तब मृगादेवी ने आश्चर्यचकित हो गौतम से पूछा कि आपको इस बालक का पता कैसे लगा ? इसके उत्तर में गौतम ने उसे अपने धर्माचार्य भगवान् महावीर के ज्ञान के
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